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मंटो की कहानी ‘नंगी आवाजें’ और टाट के पर्दे

राहुल द्रविड़ ने लंबे समय तक बल्लेबाजी करके अपनी टीम को पराजय टालने में सफलता दिलाई और कुछ मैचों में विजय भी दिलाई। राहुल द्रविड़ इतने महान खिलाड़ी रहे हैं कि कहा जाने लगा कि राहुल द्रविड़ वह संविधान है, जिसकी शपथ लेकर खिलाड़ी मैदान में उतरते हैं। राहुल को ‘द वॉल’ अर्थात दीवार कहा जाने लगा। पृथ्वीराज कपूर का नाटक ‘दीवार’ सहिष्णुता का उपदेश देता था।

देश के विभाजन का विरोध नाटक में किया गया था। चीन ने अपनी सुरक्षा के लिए मजबूत दीवार बनाई जो विश्व के सात अजूबों में से एक मानी जाती है। मुगल बादशाह शहरों की सीमा पर मजबूत दीवार बनाया करते थे। के. आसिफ की फिल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ में अनारकली को दीवार में चुन दिया जाता है। यह एक अफसाना था। उस दौर में शाही मुगल परिवार में अनारकली नामक किसी महिला का जिक्र इतिहास में नहीं मिलता।


यश चोपड़ा की सलीम-जावेद द्वारा लिखी अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म ‘दीवार’ दो सगे भाइयों के द्वंद की कथा थी। एक भाई कानून का रक्षक है तो दूसरा भाई तस्कर है। ज्ञातव्य है कि दिलीप कुमार ने ‘मदर इंडिया’ में बिरजू का पात्र अभिनीत करने से इनकार कर दिया, क्योंकि वह नरगिस के पुत्र की भूमिका अभिनीत करना नहीं चाहते थे, परंतु बिरजू का पात्र उनके अवचेतन में गहरा पैठ कर गया था। उन्होंने अपनी फिल्म ‘गंगा जमुना’ में बिरजू ही अभिनीत किया।

इस तरह ‘मदर इंडिया’ का ‘बिरजू’ दिलीप कुमार की ‘गंगा जमुना’ के बाद सलीम जावेद की ‘दीवार’ में नजर आया। कुछ भूमिकाएं बार-बार अभिनीत की जाती हैं। एक दौर में राज्यसभा में नरगिस ने यह गलत बयान दिया था कि सत्यजीत राय अपनी फिल्मों में भारत की गरीबी प्रस्तुत करके अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित करते हैं। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने नरगिस से कहा कि वे अपना बयान वापस लें, क्योंकि सत्यजीत राय तो मानवीय करुणा के गायक हैं।


कुछ समय पश्चात श्रीमती इंदिरा गांधी के विरोधियों ने नारा दिया ‘इंदिरा हटाओ’ तो इंदिरा ने इसका लाभ उठाया और नारा लगाया ‘गरीबी हटाओ’। घोषणा-पत्र से अधिक प्रभावी नारे होते हैं। हाल में ‘गोली मारो’ बूमरेंग हो गया अर्थात पलटवार साबित हुआ। देश के विभाजन की त्रासदी से व्यथित सआदत हसन मंटो ने कहानी लिखी ‘नंगी आवाजें’ जिसमें शरणार्थी एक कमरे में टाट का परदा लगाकर शयनकक्ष बनाते हैं, परंतु आवाज कभी किसी दीवार में कैद नहीं होती।

ज्ञातव्य है कि नंदिता बोस ने नवाजुद्दीन अभिनीत ‘मंटो’ बायोेपिक बनाई। फिल्म सराही गई, परंतु अधिक दर्शक आकर्षित नहीं कर पाई। गौरतलब है कि विभाजन प्रेरित फिल्में कम दर्शक देखने जाते हैं। संभवत: हम उस भयावह त्रासदी की जुगाली नहीं करना चाहते। पलायन हमें सुहाता है, क्योंकि वह सुविधाजनक है।


दीवारें प्राय: तोड़ी जाती हैं। दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात बर्लिन में दीवार खड़ी की गई। एक हिस्से पर रूस का कब्जा रहा, दूसरे पर अमेरिका का। कालांतर में यह दीवार भी गिरा दी गई। कुछ लोगों ने इस दीवार की ईंट को दुखभरे दिनों की यादगार की तरह अपने घर में रख लिया। जिन लोगों ने युद्ध का तांडव देखा है वे युद्ध की बात नहीं करते, परंतु सत्ता में बने रहने के लिए युद्ध की नारेबाजी की जाती है।


निदा फ़ाज़ली की नज्म का आशय कुछ ऐसा है कि- ‘दीवार वहीं रहती है, मगर उस पर लगाई तस्वीर नहीं होती है’।



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प्रतीकात्मक फोटो।




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‘पैरासाइट’ से बॉलीवुड क्यों शर्मिंदा न हो?

हॉलीवुड में आज इस बात पर चर्चा बंद नहीं हो रही है कि किस तरह से एक दक्षिण कोरियाई फिल्म पैरासाइट ने सबटाइटिल की एक इंच की बाधा को पार किया और ऑस्कर में सर्वोच्च पुरस्कार पाने वाली पहली विदेशी फिल्म बनी। मेरे जैसे भारत के फिल्मों के शौकीन के लिए पैरासाइट ने फिर एक बार से वही पुराना सवाल खड़ा कर दिया है कि दुनिया में सर्वाधिक फिल्में बनाने वाला भारत क्या एक ऐसी अच्छी फिल्म नहीं बना सकता, जो एकेडमी पुरस्कार के लायक हो?

भारत ने कभी सर्वोत्तम विदेशी फिल्म का पुरस्कार भी नहीं जीता है। ऐसा नहीं है कि उसके प्रयासों में कमी रही। 1957 में इस पुरस्कार की स्थापना के बाद से उसने कम से कम 50 बार प्रविष्टि दाखिल की है। केवल फ्रांस और इटली ही ऐसे हैं, जिन्हाेंने भारत से अधिक बार अपनी प्रविष्टियां दाखिल की हैं, लेकिन उन्होंने कई बार पुरस्कार भी हासिल किया है। केवल यूरोपीय फिल्म पॉवरहाउस ही ऑस्कर में चमके हों, ऐसा नहीं है। 27 देशों की फिल्मों को सर्वोत्तम विदेशी फिल्मों का पुरस्कार मिला है। इनमें ईरान, चिली व आइवरी कोस्ट भी शामिल हैं।


भारत के समर्थक इसके लिए कई तरह की दलीलें देते हैं कि भारतीय प्रविष्टि को चुनने वाली कमेटी ने कमजोर चयन किया। जो कंटेट भारतीय दशकों को भाता है वह वैश्विक दर्शकों को पसंद नहीं आता। हमारा घरेलू बाजार ही बहुत बड़ा है और हमें अंतराराष्ट्रीय दर्शकों को खुश करने की जरूरत ही नहीं है। इन सबसे ऊपर, भारतीय फिल्में विश्व स्तर की हैं, लेकिन एकेडमी पक्षपाती है और गुणवत्ता की पारखी नहीं है। इनमें से कोई भी दलील मामूली या सामान्य जांच में भी टिक नहीं सकती।

भारतीय फिल्में ऑस्कर ही नहीं, बल्कि हर प्रमुख फिल्म समारोह में लगातार मुंह की खा रही हैं। इनमें से बहुत ही कम कान, वेनिस या बर्लिन में मेन स्लेट में जगह बना पाती हैं। कोई भी भारतीय फिल्म आज तक कान में पाम डी’ऑर या फिर बर्लिन में गोल्डन बियर नहीं जीत सकी। इसलिए यह कहना पूरी तरह भ्रामक है कि दुनिया में फिल्मों का आकलन करने वाले सभी जज भारतीय फिल्मों को लेकर गलत हैं।

ठीक है, मीरा नायर ने वेनिस में मानसून वेडिंग के लिए सर्वोच्च पुरस्कार जीता दो दशक पहले 2001 में। और उन्होंने अपने अधिकांश कॅरियर में भारतीय फिल्म उद्योग के बाहर ही काम किया है। सच यह है कि भारत विश्व स्तर की फिल्में नहीं बना रहा है और यह सिर्फ कुछ समय से ही नहीं है। दुनिया के प्रमुख फिल्म आलोचकों द्वारा न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर इंडीवायर तक सभी प्रकाशनों में आने वाली सूचियों पर नजर डालेंगे तो पिछले एक साल, एक दशक या फिर एक सदी या अब तक की टाॅप फिल्मों की सूची में एक भी भारतीय फिल्म नहीं दिखेगी।

करीब एक साल पहले बीबीसी ने 43 देशों के 200 फिल्म आलोचकों के बीच कराए गए सर्वे के आधार पर 100 विदेशी सर्वकालिक फिल्मों की सूची बनाई थी। इसमें सिर्फ सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली ही स्थान बना सकी थी और यह फिल्म भी 1955 में रिलीज हुई थी। इसका मतलब यह नहीं है कि भारतीय निर्देशकोंको विदेशी समीक्षकों और वैश्विक दर्शकों के लिए फिल्म बनानी चाहिए। वे मानवीय भावनाओं को झकझोरने में सक्षम महान फिल्में बना सकें और कम से कम एक भारतीय फिल्म तो कभीकभार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान पा सके।


चीन, जापान और ब्राजील की फिल्म इंडस्ट्री भी सिर्फ अपने घरेलू दर्शकों को ध्यान में रखकर फिल्में बनाती है, लेकिन ऑस्कर, फिल्म समारोहों और प्रसिद्ध समीक्षकों के बीच उनका प्रदर्शन भारत से कहीं अच्छा रहता है। अंतरराष्ट्रीय दर्शकों की नजर में आने से पहले ही पैरासाइट दक्षिण कोरिया के सिनेमाघरों में सनसनी फैला चुकी थी। फिर भारतीय सिनेमा के खराब स्तर की वजह क्या है? फिल्में लोकप्रिय संस्कृति से प्रवाहित होती हैं, लेकिन हम सेलेब्रिटी को लेकर इस हद तक जूनूनी हैं कि वह गुणवत्ता खराब कर रहा है।

किसी भी अन्य प्रमुख फिल्म इंडस्ट्री मेंसितारे फिल्म के बजट का इतना बड़ा हिस्सा नहीं लेते हैं कि निर्माता के पास स्क्रिप्ट, संपादन और उन बाकी कलाओंके लिए पैसे की कमी हो जाए, जिनसे महान फिल्म बनती है। कई बार स्क्रिप्ट स्टार को ध्यान में रखकर लिखी जाती है न कि कहानी को और यही सबसे बड़ी वजह है कि हमारी फिल्मों के प्रति अंतरराष्ट्रीय आलोचक उदासीन रहते हैं।


भारत को इससे बेहतर की उम्मीद करनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में जो भारी भरकम भारतीय दल जाता है, उसका फोकस फिल्म के कंटेट की बजाय इस बात पर अधिक रहता है कि हमारे स्टार रेड कारपेट पर क्या पहन रहे हैं। वहां से लौटकर मीडिया भी उन ब्रांडों की क्लिप चलाते हैं, जो भारत में अपना सामान बेचना चाहते हैं, लेकिन इस बात पर कुछ नहीं कहते कि भारत बार-बार खाली हाथ क्यों लौट रहा है। वे बहुत कम की उम्मीद करते हैं और वही पाते हैं।


इसे बदलने के लिए घरेलू फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े अधिक से अधिक लोगों को इस मध्यमता को पहचानने की जरूरत है और एक विश्व स्तर का कंटेंट बनाने के लिए भीतर से तीव्र इच्छा जगाने की जरूरत है। ऐसा दबाव बनने के कुछ संकेत भी हैं। पिछले कुछ सालों में बड़े स्टार वाली फिल्में जहां धड़ाम हो गईं, वहीं कम बजट की और अच्छी कहानी वाली फिल्मों का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा।

बॉक्स ऑफिस पर दर्शकों की संख्या स्थिर रहने और लाइव स्ट्रमिंग, डिजिटल गेमिंग के साथ ही स्क्रीन मनोरंजन के कई अन्य विकल्पों के उभरने से भारतीय निर्माताओं को यह समझने की जरूरत है कि व्यावसायिक रूप से बने रहने के लिए क्वालिटी ही एक मात्र रास्ता होगा।

तब तक न्यूयॉर्क में रहने वाला मुझ जैसा भारतीय सिनेमा का फैन मैनहट्‌टन के उस एकमात्र थिएटर में जाता रहेगा, जो हिंदी फिल्म दिखाता है। यह उस देश से जुड़े रहने का एक जरिया है, जिसे मैं बहुत प्यार और याद करता हूं। मैं यह उम्मीद करना भी जारी रखूंगा कि भविष्य में एक दिन मुझे पैरासाइट जैसी एक भारतीय फिल्म मिलेगी। (यह लेखक के अपने विचार हैं।)



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पैरासाइट फिल्म का दृश्य।




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क्या हॉलीवुड का ‘जोकर’ भी शहरी नक्सली है?

मैं निराश हूं। मुझे उम्मीद थी कि ‘जोकर’ को बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड मिलेगा। शुक्र है कि जोकिन फीनिक्स को बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिल गया। जोकर न केवल एक महान फिल्म है, बल्कि यह आज के समय में एक साहसिक राजनीतिक बयान भी है। खासतौर से यहां भारत में रहने वालों के लिए। यह एक ऐसे छोटे व्यक्ति की कहानी है, जो अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो बिना किसी कारण के लगातार और हर मोड़ पर उस पर धौंस जमाते हैं और परेशान करते हैं, जिससे उसकी निजता भी खतरे में पड़ जाती है।

इस फिल्म को देखकर आपको अहसास होगा कि काल्पनिक शहर गॉथम कितना वास्तविक है। अब यह सिर्फ कॉमिक बुक की कल्पना नहीं है। यह वह दुनिया है, जहां आप और मैं रहते हैं। यह सब जगह रहने वाले आम लोगाेंकी कहानी है। जो उस समय आसानी से चोट खा बैठते हैं, जब किसी की परवाह न करने वाली असभ्य दुनिया प्रभुत्व के अपने बेढंगे सपने के पीछे अपनी धुरी पर घूमती है। ये वो हैं जो सबसे असुरक्षित और सबसे हारे हुए हैं। इन्हें सबसे अधिक तनाव यह बात देती है कि उनके अपने लोग ही नहीं समझते की असल में हो क्या रहा है। वे राजनीति द्वारा उनके चारों ओर बनाए गए कल्पना और शक्ति के प्रेत के पीछे भागने में व्यस्त हैं।


टाॅड फिलिप्स द्वारा लिखी इस शानदार प्रतीकात्मक कहानी में अंतत: जोकर एक तरह की अनिच्छा से अवज्ञा का एक कदम उठाकर अपनी क्रांति को प्रज्ज्वलित कर देता है, जो उसे खुद के बारे में सोचने की हिम्मत देता है। इससे उसके चारों ओर की दुनिया में यह ज्वाला भड़क उठती है। हर जोकर सड़क पर होता है, लड़ता हुआ, दंगा और आगजनी करता हुआ। वे एक जोशीले हीरो की तलाश में थे, जो परिवर्तन के लिए प्रेरित कर सके, जो इस दुनिया को सभी के लिए रहने का एक अच्छा स्थान बना सके। और अपने नायक जोकर में उन्हें वह नजर आ गया। यहां पर उसे तलाशना नहीं पड़ेगा।

हीरो यहीं है, उनके बीच में। वे ही हीरो हैं। जोकर जो भी करता है वह उनके गुस्से और दुखों की छवि है। फिलिप्स ने अपनी फिल्म से यही संदेश दिया है, जिसे भुलाने में हमें लंबा समय लगेगा। यह उस साहस के बारे में है, जो कमजोर में हताशा से पैदा होता है। ऐसा साहस जो अपनी आवाज को पाने के लिए हर तरह के डर और अनिश्चितता को खारिज कर देता है। यह अकेले, हारे हुए, डरे हुए लोगों का साहस है। यह साहस निडर और बहादुर बने रहने के लिए अपने चारों ओर की दुनिया को चुनौती देता है। यही है जो नायकत्व के लिए जरूरी है और जोकर हमारे समय का हीरो है।


जोकिन फीनिक्स ने अपने भाषण में पुष्टि की कि जब उन्हें ऑस्कर मिला तो भीड़ ने ठंडी सांस ली। वह पहले भी अपनी अंतरात्मा से बात कर चुके हैं। गोल्डन ग्लोब में उन्हांेने जलवायु परिवर्तन पर बात की थी। बाफ्टा में उन्होंने नस्लवाद पर बात की। अन्य जगहों पर लैंगिक भेदभाव और महिलाओं को उनकी वाजिब पहचान न मिलने पर बात की। उन्होंने दुनिया में बढ़ रही असमानता पर बात की, जहां 2000 अरबपति 4.6 अरब गरीब लोगों से अमीर हैं।

जैसा कि ऑक्सफैम ने इस साल दावोस में ध्यान दिलाया था कि 22 अमीर लोगों के पास अफ्रीका की सभी महिलाओं से अधिक संपत्ति है। भारत के एक फीसदी अमीर लोगों के पास हमारे 95.30 करोड़ लोगोंसे चार गुना अधिक संपत्ति है, ये लोग देश की आबादी का 70 फीसदी हैं। लेकिन, इससे हम मुद्दे से हट जाएंगे।


फीनिक्स ने बताया कि किस तरह से सिनेमा का मनोरंजन से अधिक एक बड़ा उद्देश्य है। यह उद्देश्य मूक लोगों को आवाज देना है। उन्होंने दुनिया बदलने की ताकत को इस माध्यम का सबसे बड़ा तोहफा बताया। चाहे यह लैंगिक असमानता हो, नस्लवाद हो, समलैंगिकों के अधिकार हों या फिर अन्य सताए लोगों के हक। यह अंतत: एक बढ़ते अन्याय के खिलाफ एक सामूहिक लड़ाई थी। उन्होंने कहा कि ‘हम एक राष्ट्र, एक व्यक्ति, एक जाति, एक लिंग और एक प्रजाति को प्रभुत्व का हक होने और दूसरे का इस्तेमाल और नियंत्रण की बात कर रहे हैं’।

उन्होंने धर्म या जाति का जिक्र नहीं किया, लेकिन अगर उनके जहन में भारत होता तो यह जिक्र भी होता। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों की बरबादी के लिए भी लालच को जिम्मेदार ठहराया। करोड़ों पशु-पक्षी गायब हो गए हैं, करोड़ों विलुप्त होने की कगार पर हैं, यह सब हमारी वजह से है, हमने उनसे कैसे बर्ताव किया। उन्होंने दूध और डेयरी इंडस्ट्री और उसकी निर्दयता के बारे में भी बात की। एक पूर्ण शाकाहारी (वीगन) फीनिक्स ने कृत्रिम गर्भाधान, बछड़ों को उनकी मां से दूर करना और चाय व कॉफी के लिए दूध के अनियंत्रित इस्तेमाल पर बात की।

उन्हाेंने एक अधिक मानवीय दुनिया बनाने की बात की, जहां पर पशुओं को हमारी दया पर न जीना पड़े। उनका भाषण उनके दिवंगत भाई रिवर फीनिक्स की इस कविता से खत्म हुआ : ‘प्रेम से बचाने दौड़ें और शांति अनुसरण करेगी।’ जब जोकर ने सड़कों पर दंगे देखे तो उसने ठीक यही किया। वह जिसके लिए लड़ रहा था वह केवल शांति थी। उन लोगांंे से शांति, जो उसे अकेला नहीं छोड़ते। उनके और उसके जैसों के लिए शांति जो बढ़ते अन्याय से आहत हो रहे थे।(यह लेखक के अपने विचार हैं।)



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‘जोकर’ फिल्म का पोस्टर।




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कितना ‘उत्कृष्ट’ है हमारा काम और बर्ताव?

रेल यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने के लिए 400 करोड़ रुपए की लागत से अक्टूबर 2018 में ‘उत्कृष्ट’ योजना शुरू की गई थी। इसके तहत करीब 300 उत्कृष्ट रेल डिब्बों में कई आधुनिक सुख-सुविधाओं के अलावा एलईडी लाइट्स लगाई गईं और बिना बदबू वाले टॉयलेट्स बनाए गए। अब सीधे 20 फरवरी 2020 पर आते हैं। इन 17 महीनों में डिब्बों के टॉयलेट्स और वॉश बेसिन से स्टील के 5 हजार से ज्यादा नल चोरी हो गए।

रेलवे के आंकड़े यह भी बताते हैं कि 80 उत्कृष्ट डिब्बों से स्टील के फ्रेम वाले करीब 2000 आईने, करीब 500 लिक्विड सोप डिस्पेंसर और करीब 3000 टॉयलेट फ्लश वाल्व भी गायब हैं। कुला मिलाकर बदमाशों ने रेलवे के सबसे शानदार उत्कृष्ट डिब्बों में जमकर उत्पात मचाया और टॉयलेट कवर्स और सोप डिस्पेंसर्स तक नहीं छोड़े।


जब भी मैं यात्रा कर रही जनता के द्वारा नुकसान पहुंचाने की खबरों के बारे में पढ़ता हूं, मुझे जापान की रेल याद आती है। ये न सिर्फ इसलिए शानदार हैं, क्योंकि साफ हैं, समय पर चलती हैं और सरकार इनमें सबसे अच्छी सुविधाएं दे रही है, बल्कि ज्यादातर जापानी भी यह सुनिश्चित करते हैं कि इन सुविधाओं का कोई भी दुरुपयोग न करे। लेकिन नुकसान पहुंचाने और चोरी को स्पष्ट ‘न’ है! जापान में रेल यात्रा को लेकर एक कहानी है।

एक गैर-जापानी ने ट्रेन में सफर करते हुए अपने पैर सामने वाली बर्थ पर रख दिए, क्योंकि वहां कोई नहीं बैठा था। जब स्थानीय जापानी यात्री ने उसे ऐसा करते देखा तो वह उसके पैरों के बगल में बैठ गया और गैर-जापानी यात्री के पैर अपनी गोद में रख लिए। वह यात्री चौंक गया। तब स्थानीय यात्री ने कहा, ‘आप हमारे मेहमान हैं और हमारी संस्कृति हमें मेहमान का अपमान करने से रोकती है, लेकिन हम किसी को अपनी सार्वजनिक संपत्ति का इस तरह अपमान भी नहीं करने देते!’ ऐसी टिप्पणी सुन उस मेहमान की चेहरे की आप कल्पना कर सकते हैं।


यही कारण है कि मुझे अहमदाबाद के रीजनल पासपोर्ट ऑफिस (आरपीओ) द्वारा एक साधारण गृहिणी उर्वशी पटेल की खराब स्थिति को देखते हुए एक घंटे के अंदर पासपोर्ट देने जैसे कार्य हमेशा बहुत अच्छे लगते हैं। 51 वर्षीय उर्वशी गुजरात के नडियाड में अपने 21 वर्षीय बेटे और 18 वर्षीय बेटी के साथ रहती हैं।

उनके पति 54 वर्षीय विलास पटेल पिछले 8 सालों से केन्या की राजधानी नैरोबी में रह रहे थे। विलास को वहां डायबिटीज के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया था और उनकी स्थिति सुधर रही थी। लेकिन अचानक उनका शुगर लेवल गिर गया और सोमवार को वे डायबिटिक कॉमा में आ गए। एक घंटे में उनकी किडनी फेल हो गईं और डॉक्टरों ने उन्हें सोमवार को ही मृत घोषित कर दिया।


उर्वशी अपने पति का अंतिम संस्कार करने के लिए केन्या जाना चाहती थीं, लेकिन उनका दिल टूट गया, जब उनका वीज़ा खारिज हो गया, क्योंकि उनके पासपोर्ट की 6 महीने से भी कम की वैधता बची थी और 29 मई को इसकी समाप्ति तारीख थी। उन्होंने मंगलवार को ऑनलाइन वीज़ा फॉर्म भरने की कोशिश की जो वैधता की समस्या के चलते खारिज हो गया था।

चूंकि बच्चों के पासपोर्ट में ऐसी कोई समस्या नहीं थी, इसलिए वे नैरोबी चले गए। दु:ख और सदमे के साथ उर्वशी बुधवार को सुबह 11 बजे अहमदाबाद आरपीओ पहुंचीं। उन्होंने अधिकारियों को अपनी परिस्थिति बताई और एक घंटे के अंदर ही उर्वशी को पासपोर्ट जारी कर दिया गया। वे गुरुवार को नैरोबी के लिए निकल गईं।


अगर आपके पास शक्ति है तो वैसा ही करें, जैसा अहमदाबाद आरपीओ ने किया। और अगर आप नागरिक हैं तो वैसा करें, जैसा जापानी नागरिक ने मेहमान के साथ किया।

फंडा यह है कि देश हर क्षेत्र में दूसरे देशों से बहुत आगे निकल सकता है, अगर हमारा काम और व्यवहार ज्यादा से ज्यादा ‘उत्कृष्ट’ हो।



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प्रतीकात्मक फोटो।




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हमारे नेता ‘राष्ट्र’ की राजनीति करते हैं, उसे आत्मसात नहीं करते

14 अगस्त 1947 की आधी रात को जब अंग्रेजी झंडा उतर रहा था और उसकी जगह अपना तिरंगा ले रहा था, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपने संबोधन में ‘नेशन’ शब्द काम में लिया था। तब से ही देश में यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या पंडित नेहरू का ‘नेशन’ वह ‘नेशन’ ही था जो वे विदेश में पढ़ और सीखकर आए थे या उनका ‘नेशन’ भारत का वह ‘राष्ट्र’ था जिसकी छाया में उन्होंने जन्म लिया था। ‘नेशन’ और ‘राष्ट्र’ के ही अनुरूप नेहरू के ‘नेशनलिज्म’ और ‘राष्ट्रवाद’ के प्रति संशय की बात होती है। पंडित नेहरू से लेकर अब तक इस देश के नेता ‘नेशनलिज्म’ और ‘राष्ट्रवाद’ की समझ के प्रति संशय में ही दिखाई देते आ रहे हैं।


इन दिनों समाचारों की सुर्खियों में ‘पॉजिटिव नेशनलिज्म’ या ‘सकारात्मक राष्ट्रवाद’ की बात हो रही है। यहां भी वही प्रश्न उपस्थित है जो नेहरू के दौर में उपस्थित था। सही बात यह है जहां ‘राष्ट्र’ की तुलना में ‘नेशन’ शब्द आ जाता है, वहां राजनीति शुरू हो जाती है। हमें समझना चाहिए कि ‘नेशन’ की अवधारणा ‘राष्ट्र’ की अवधारणा से पूरी तरह अलग है। दोनों ही शब्दों को काम लेने वाले लोग इस समय देश में राजनीति कर रहे हैं। इस प्रवृत्ति को ‘पॉलिटिकल नेशनलिज्म’ या ‘राजनीतिक राष्ट्रवाद’ कहा जाना चाहिए।

सीधी-सी बात है कि यदि कहीं राष्ट्रवाद (नेशनलिज्म नहीं) होगा तो वह सकारात्मक ही होगा। वह नकारात्मक हो ही नहीं सकता। क्या सत्य नकारात्मक हो सकता है? यदि इन प्रश्नों का उत्तर ना है, तो हमें समझना चाहिए कि राष्ट्र हमारी सांस्कृतिक विरासत है और वह हमेशा सकारात्मक ही होगी। भारत से बाहर दुनिया में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, धर्म, सत्य आदि प्रत्ययों के लिए ये ही शब्द काम में नहीं लिए जाते। वहां इनके अर्थ पूरी तरह अलग हैं।

भारत ही इनका विशिष्ट अर्थ जानता है, क्योंकि इनका मूल भारत में ही है। इसी तर्ज पर कहना चाहिए कि हमारा भारत ‘राष्ट्र’ को जानता है, ‘नेशन’ को नहीं जानता। जाहिर है कि जो लोग ‘राष्ट्र’ का अनुवाद ‘नेशन’ करते हैं, वे गलती करते हैं। अपने यहां तो राष्ट्र सकारात्मक अर्थ में ही होगा। उसमें नेशन की तरह भूमि, आबादी और सत्ता ही शामिल नहीं होगी, बल्कि संस्कृति भी शामिल होगी। संस्कृति कभी नकारात्मक नहीं हो सकती। नकारात्मक होती है दुष्कृति।


राष्ट्र न तो यूरोपीय और अमेरिकी सत्ताधीशों द्वारा ताकत के बल पर बनाए हुए नक्शों का नाम है, न उग्र भीड़ द्वारा नारे लगाकर विरोधी देश का दुनिया से नक्शा मिटा देने की कसम उठाने का नाम है और न ही यह लोगों को मुफ्त में बिजली-पानी देने का वादा करके उन्हें मूर्ख बनाने का नाम है। यदि राष्ट्रवाद को समझना ही हो तो इस सरल उदाहरण से समझना चाहिए कि राष्ट्रवाद नाम है उस संस्कार का, उस दर्द का जो किसी भारतीय के मन में भारत के लिए तब भी जागता है, जब वह किसी कारणवश भारत का नागरिक न रहकर किसी अन्य देश का नागरिक बन जाता है।

‘न भूमि/ न भीड़/ न राज्य/ न शासन.../ राष्ट्र है/ इन सबसे ऊपर/ एक आत्मा’- किसी कवि के कहे इन शब्दों के माध्यम से आप सामान्य बुद्धि के व्यक्ति को तो राष्ट्र का अर्थ समझा सकते हैं, लेकिन धन और सत्ता के लोभी हमारे नेताओं को आप इन शब्दों के माध्यम से राष्ट्र का अर्थ नहीं समझा सकते और सही पूछो तो इस दौर का सबसे बड़ा संकट भी यही है कि हमारे नेता ‘राष्ट्र’ की राजनीति करते हैं, उसे आत्मसात नहीं करते!



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प्रतीकात्मक फोटो।




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महज व्यापार के नजरिये से न करें ‘नमस्ते ट्रम्प’

सदियों तक याचक रहने के कारण हम मेहमान के आने का लेखा-जोखा फायदे और खासकर तात्कालिक आर्थिक लाभ के नजरिये से करते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति को ‘नमस्ते ट्रम्प’ के भावातिरेक में सम्मान दिया गया। लेकिन, विश्लेषकों का एक बड़ा वर्ग है, जो इस यात्रा को व्यापारिक लाभ-हानि के तराजू पर तौलने लगा है। यानी अगर कुछ मिला तो ही ‘स्वागत’ सफल। दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति को केवल 23 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था (हमसे करीब सात गुना ज्यादा) वाले देश का मुखिया मानना और तब यह सोचना कि दोस्त है तो भारत को आर्थिक लाभ क्यों नहीं देता, पचास साल पुरानी बेचारगी वाली सोच है।

भारत स्वयं अब तीन ट्रिलियन डॉलर की (दुनिया में पांचवीं बड़ी) अर्थव्यवस्था है। कई जिंसों का निर्यातक है और शायद सबसे बड़े रक्षा आयातक के रूप में हथियार निर्यातक देशों से अपनी शर्तों पर समझौते करने की स्थिति में है। अमेरिकी राष्ट्रपति का भारत आना भू-रणनीतिक दृष्टिकोण से भी देखना होगा, क्योंकि हमारे पड़ोस में दो ऐसे मुल्क हैं जो हमारे लिए सामरिक खतरा बनते रहे हैं। सस्ते अमेरिकी पोल्ट्री या डेरी उत्पाद के लिए हम कुक्कुट उद्योग और दुग्ध उत्पादन में लगे किसानों का गला नहीं दबा सकते और अमेरिका हमारा स्टील महंगे दाम पर खरीदे, यह वहां के राष्ट्रपति के लिए अपने देश के हित के खिलाफ होगा।

फिर हमारी मजबूरी यह भी है कि हमारे उत्पाद महंगे भी हैं। हमारा दूध पाउडर जहां 320 रुपए किलो लागत का है, वहीं न्यूजीलैंड हमें यह 250 रुपए में भारत में पहुंचाने को तैयार है। स्टील निर्यात को लेकर हमने अमेरिका के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन में केस दायर किया और फिर जब हमने उनकी हरियाणा में असेम्बल मशहूर हर्ले डेविडसन मोटरसाइकिल पर 100 प्रतिशत ड्यूटी लगाई तो ट्रम्प ने व्यंग्य करते हुए हमें टैरिफ का बादशाह खिताब से नवाजा और प्रतिक्रिया में उस लिस्ट से हटा दिया, जिसके तहत भारत अमेरिका को करीब छह अरब डाॅलर का सामान बगैर किसी शुल्क का भुगतान किए निर्यात कर सकता था। ट्रम्प-मोदी केमिस्ट्री का दूरगामी असर दिखेगा, रणनीतिक-सामरिक रूप से भी और चीन की चौधराहट पर अंकुश के स्तर पर भी। बहरहाल कल की वार्ता में रक्षा उपकरण, परमाणु रिएक्टर और जिंसों के ट्रेड में काफी मजबूती आने के संकेत हैं जो भारत के हित में होगा।



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अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प।




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अशांति के खिलाफ ईमानदार और सख्त ‘राजदंड’ जरूरी

पूरे देश में दो संप्रदायों के बीच खाई लगातार बढ़ती जा रही है। देश की राजधानी जल रही है, लगभग तीन दर्जन लोग मारे गए हैं, जिसमें एक पुलिस कांस्टेबल भी है। पिछले कुछ वर्षों में देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा है। गृह राज्यमंत्री का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के दौरान भड़की दिल्ली हिंसा की घटनाएं किसी साजिश की बू देती हैं।

साजिश कौन कर रहा है, अगर कर रहा है तो कहने वाले मंत्री, जो स्वयं इसे रोकने के जिम्मेदार हैं, क्या कर रहे हैं? ऐसे इशारों में बात करके क्या साजिशकर्ताओं को रोक सकेंगे? यही सब तो वर्षों से किया जा रहा है। क्या सत्ता का काम इशारों में बात करना है? अच्छा तो होता जब उसी मीडिया के सामने ये मंत्री साजिशकर्ताओं को खड़ा करते और अकाट्य साक्ष्य के साथ उन्हें बेनकाब करते। जब एक मंत्री बयान देता है कि ‘तुम्हें पाकिस्तान दे दिया, अब तुम पाकिस्तान चले जाओ, हमें चैन से रहने दो’, तो क्यों नहीं उसी दिन उसे पद से हटाकर मुकदमा कायम किया जाता?

उसने तो संविधान में निष्ठा की कसम खाई थी और उसी संविधान की प्रस्तावना में ‘हम भारत के लोग’ लिखा था न कि ‘हमारा हिंदुस्तान, तुम्हारा पाकिस्तान’। राजसत्ता के प्रतिनिधियों की तरफ से इन बयानों के बाद लम्पट वर्ग का हौसला बढ़ने लगता है और दूसरी ओर संख्यात्मक रूप से कमजोर वर्ग में आत्मसुरक्षा की आक्रामकता पैदा हो जाती है। फिर अगर मंच से कोई बहका नेता ‘120 करोड़ पर 15 करोड़ भारी’ कहता है तो उसे घसीटकर पूरे समाज को बताना होता है कि भारी लोगों की संख्या नहीं, बल्कि कानून और पुलिस है।

लेकिन इसकी शर्त यह है कि सरकार को यह ताकत तब भी दिखानी होती है जब चुनाव के दौरान केंद्र का मंत्री ‘देश के गद्दारों को’ कहकर भीड़ को ‘गोली मारो सा... को’ कहलवाता है। आज जरूरत है कि देश का मुखिया वस्तु स्थिति समझे और एक मजबूत, निष्पक्ष राजदंड का प्रयोग हर उस शख्स के खिलाफ करे जो भावनाओं को भड़काने के धंधे में यह सोचकर लगा है कि इससे उसका राजनीतिक अस्तित्व पुख्ता होगा। भारत को सीरिया बनने से बचाने के लिए एक मजबूत राज्य का संदेश देना जरूरी है।



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प्रतीकात्मक फोटो।




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‘हुनूज दूर अस्थ’

खबर यह है कि हुक्मरान नया संसद भवन बनाना चाहते हैं। इतिहास में अपना नाम दर्ज करने की ललक इतनी बलवती है कि देश की खस्ताहाल इकोनॉमी के बावजूद इस तरह के स्वप्न देखे जा रहे हैं। खबर यह भी है कि नया भवन त्रिभुज आकार का होगा। मौजूदा भवन गोलाकार है और इमारत इतनी मजबूत है कि समय उस पर एक खरोंच भी नहीं लगा पाया है।

क्या यह त्रिभुज समान बाहों वाला होगा या इसका बायां भाग छोटा बनाया जाएगा? वामपंथी विचारधारा से इतना खौफ लगता है कि भवन का बायां भाग भी छोटा रखने का विचार किया जा रहा है। स्मरण रहे कि फिल्म प्रमाण-पत्र पर त्रिभुज बने होने का अर्थ है कि फिल्म में सेंसर ने कुछ हटाया है। ज्ञातव्य है कि सन 1912-13 में सर एडविन लूट्यन्स और हर्बर्ट बेकर ने संसद भवन का आकल्पन किया था, परंतु इसका निर्माण 1921 से 1927 के बीच किया गया।

किंवदंती है कि अंग्रेज आर्किटेक्ट को इस आकल्पन की प्रेरणा 11वीं सदी में बने चौसठ योगिनी मंदिर से प्राप्त हुई थी। बहरहाल, 18 जनवरी 1927 को लॉर्ड एडविन ने भवन का उद्घाटन किया था। सन् 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने भवन के ऊपर दो मंजिल खड़े किए। इस तरह जगह की कमी को पूरा किया गया।


13 दिसंबर 2001 में संसद भवन पर पांच आतंकवादियों ने आक्रमण किया था। उस समय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे। फिल्मकार शिवम नायर ने इस सत्य घटना से प्रेरित होकर एक काल्पनिक पटकथा लिखी है। जिसके अनुसार 6 आतंकवादी थे। पांच मारे गए, परंतु छठा बच निकला और इसी ने कसाब की मदद की जिसने मुंबई में एक भयावह दुर्घटना को अंजाम दिया था। पटकथा के अनुसार यह छठा व्यक्ति पकड़ा गया और उसे गोली मार दी गई।

बहरहाल, शिवम नायर ने इस फिल्म का निर्माण स्थगित कर दिया है। विनोद पांडे और शिवम नायर मिलकर एक वेब सीरीज बना रहे हैं, जिसकी अधिकांश शूटिंग विदेशों में होगी। वेब सीरीज बनाना आर्थिक रूप से सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि यह सिनेमाघरों में प्रदर्शन के लिए नहीं बनाई जाती। आम दर्शक इसका भाग्यविधाता नहीं है। एक बादशाह को दिल्ली को राजधानी बनाए रखना असुरक्षित लगता था। अत: वह राजधानी को अन्य जगह ले गया।

उस बादशाह ने चमड़े के सिक्के भी चलाए थे। यह तुगलक वंश का एक बादशाह था, जिसके परिवार के किसी अन्य बादशाह ने दिल्ली पर आक्रमण किया था। दिल्ली में भगदड़ मच गई थी, परंतु हजरत निजामुद्दीन औलिया शांत बने रहे। उन्होंने कहा ‘हुनूज (अभी) दिल्ली दूर अस्थ’ अर्थात अभी दिल्ली दूर है। सचमुच वह आक्रमण विफल हो गया था। फौजों को यमुना की उत्तंुग लहरें ले डूबी थीं। आक्रमणकर्ता के सिर पर दरवाजा टूटकर आ गिरा और वह मर गया।


वर्तमान समय में भी दिल्ली जल रही है। समय ही बताएगा कि यह साजिश किसने रची। मुद्दे की बात यह है कि अवाम ही कष्ट झेल रहा है। देश के कई शहर उस तंदूर की तरह हैं जो बुझा हुआ जान पड़ता है, परंतु राख के भीतर कुछ शोले अभी भी दहक रहे हैं। दिल्ली के आम आदमी में बड़ा दमखम है। वह आए दिन तमाशे देखता है।

केतन मेहता की फिल्म ‘माया मेमसाब’ का गुलजार रचित गीत याद आता है- ‘यह शहर बहुत पुराना है, हर सांस में एक कहानी, हर सांस में एक अफसाना, यह बस्ती दिल की बस्ती है, कुछ दर्द है, कुछ रुसवाई है, यह कितनी बार उजाड़ी है, यह कितनी बार बसाई है, यह जिस्म है कच्ची मिट्टी का, भर जाए तो रिसने लगता है, बाहों में कोई थामें तो आगोश में गिरने लगता है, दिल में बस कर देखो तो यह शहर बहुत पुराना है।’



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संसद भवन (फाइल फोटो)।




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‘अनलाइकली हैंडशेक्स’ बिजनेस के लिए, जिंदगी के लिए नहीं

रविवार को देर शाम मैं भोपाल एयरपोर्ट से रेलवे स्टेशन जा रहा था, जहां से मुझे एक कार्यक्रम के लिए सतना पहुंचना था। तब वहां तेज बारिश हो रही थी। मेरी आदत है कि जब मैं ट्रेन से सफर करता हूं तो ज्यादा वजन लेकर नहीं चलता, क्योंकि मुझे रेलवे प्लेटफॉर्म्स पर अपना सूटकेस खींचना कई कारणों से पसंद नहीं है। इनमें से एक कारण स्वच्छता भी है। मैं यह हल्की अटैची भी कुली से उठवाता हूं, न सिर्फ इस अच्छी मंशा के लिए कि इससे उस कुली की कुछ आय हो जाएगी, बल्कि इसलिए भी कि मेरी अटैची के व्हील्स को गंदे रेलवे प्लेटफॉर्म्स पर न खींचना पड़े।

मैं बेमौसम तेज बरसात के बीच जब भोपाल स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर चल रहा था, तभी मैंने एक खबर पढ़ी। लिखा था कि टेक्सटाइल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक, इंसानों के लिए दवाओं से लेकर पौधों के लिए कीटनाशकों तक और जूतों से लेकर सूटकेस तक, भारत सरकार ऐसे करीब 1,050 आइटम्स दुनियाभर में तलाश रही है, क्योंकि चीन से आने वाली सप्लाई कोरोना वायरस की वजह से प्रभावित हुई है। भारत के आयात में 50 फीसदी हिस्सेदारी चीन से होने वाली सप्लाई की होती है।

खबर के मुताबिक कुछ क्षेत्रों में सरकार खरीदी में ज्यादा प्राथमिकता दिखाएगी, लेकिन जहां संभव हो, वहां स्थानीय उत्पादन को भी बढ़ावा देगी। और यही भारतीय व्यापार के लिए अनपेक्षित व्यापार उद्योगों से ‘अनलाइकली हैंडशेक्स’ (हाथ मिलाने के असंभव लगने वाले अवसर) का मौका है। जैसा कि 53 वर्षीय कुमार मंगलम बिड़ला भी सलाह देते हैं। करीब 6 अरब डॉलर की नेटवर्थ वाले उद्योगपति बिड़ला ने हाल में सोशल मीडिया पर 10 पेज लंबा लेख साझा किया है, जिसमें उन्होंने पिछले कुछ सालों में जो कुछ सीखा है, उसका सार बताया है।

बिड़ला मानते हैं कि उनके सभी बिजनेस की ग्रोथ का अगला चरण ‘अनलाइकली हैंडशेक्स’ से आएगा। वे लिखते हैं, ‘बिजनेस में वैल्यू बनाने का नए युग का तरीका ग्रोथ के ऐसे बेमेल साधनों से आएगा, जो बहुत अलग तरह के ‘लगने वाले’ उद्योगों और कंपनियों से उत्पन्न होंगे।’ वे अपनी बात समझाने के लिए हेल्थ इंश्योरेंस बिजनेस का उदाहरण देते हैं, जो फिटनेस वियरेबल कंपनीज, जिम, फार्मेसी, डायटिशियंस और वेलनेस कोच का इकोसिस्टम बना रहा है।


जहां बिजनेस में ज्यादा से ज्यादा ‘अनलाइकली हैंडशेक्स’ की सलाह दी जा रही है, वास्तविक जीवन में न सिर्फ सरकार और प्राइवेट संस्थाएं, बल्कि चीन, फ्रांस, ईरान और दक्षिण कोरिया जैसे देश लोगों से मिलने के दौरान ‘हाथ मिलाने’ के विरुद्ध चेतावनी दे रहे हैं। कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में लोग हाथ मिलाना बंद कर रहे हैं।


पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन (पीएमसी) और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसे संस्थान लोगों से दोस्तों, सहकर्मियों और रिश्तेदारों का अभिवादन करने के लिए पारंपरिक नमस्ते अपनाने पर जोर देने को कह रहे हैं। पीएमसी स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला एवं बाल विकास से जुड़े सार्वजनिक महकमों में काम कर रहे लोगों के बीच हाथा मिलाना, फिस्ट बंप (मुटि्ठयां टकराना) और गले लगना बंद करने को लेकर जागरूकता लाने का काम रहा है। उनकी प्राथमिकता न सिर्फ कोरोना वायरस से बल्कि स्वाइन फ्लू और अन्य वायरस व कीटाणुओं से बचना है, जो श्वास संबंधी बीमारियों का कारण बन सकते हैं। मुंबई में कई संस्थानों ने साफ-सफाई के प्रति जागरूकता बढ़ाई है और अपने कर्मचारियों में स्वच्छता की आदत को बढ़ावा देने के लिए बार-बार साबुन से हाथ धोने पर जोर दे रहे हैं।


इससे मुझे याद आया कि कैसे हमारे माता-पिता छोटी-छोटी बात पर भी हमसे हाथ धोने को कहते थे। मेरी मां इस मामले में इतनी सख्त थीं कि मुझे स्कूल जाते समय जूतों के फीते बांधने के बाद भी हाथ धोने पड़ते थे। उनका तर्क था कि मैं इन्हीं हाथों से किताबें पकड़ूंगा, जिससे मां सरस्वती का अपमान होगा। अब पीछे मुड़कर देखता हूं तो सोचता हूं कि वे दरअसल बैक्टीरिया को हाथों के जरिये किताबों तक जाने से रोक रही थीं, क्योंकि किताबें कभी-कभी तकिए के पास या बिस्तर पर भी रखी जाती हैं। मेरे घर में न सिर्फ खाने का कोई सामान छूने से पहले हाथ धोना जरूरी था, बल्कि किचन के अंदर जाने से पहले पैर और हाथ धोने का भी नियम था, यहां तक कि मेरे पिता के लिए भी। वे भी इन नियमों का पूरी तत्परता से पालन करते थे।

फंडा ये है कि बिजनेस की ग्रोथ के लिए ‘अनलाइकली हेंडशैक्स’ करने होंगे, जबकि खुद की देखभाल के लिए इनसे बचना होगा।



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'Unlicensed handshakes' for business, not for life




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‘गुड न्यूज’ और ‘परवरिश’ का लिंक

कुछ महीने पूर्व प्रदर्शित फिल्म ‘गुड न्यूज’ में स्पर्म प्रयोगशाला में समान सरनेम होने के कारण स्पर्म की अदला-बदली हो जाती है। यह फिल्म ‘विकी डोनर’ नामक फिल्म की एक शाखा मानी जा सकती है। मेडिकल विज्ञान की खोज से प्रेरित फिल्में बन रही हैं। ‘गुड न्यूज’ साहसी विषय है। चुस्त पटकथा एवं विटी संवाद के कारण दर्शक प्रसन्न बना रहता है। समान सरनेम होने से प्रेरित एक अन्य कथा में तलाक लिए हुए पति-पत्नी को रेल के एक कूपे में आरक्षण मिल जाता है। वे एक-दूसरे की यात्रा से अनजान थे। ज्ञातव्य है कि भारतीय रेलवे के प्रथम श्रेणी में कूपे का प्रावधान होता था, जिसमें दो-दो यात्री सफर करते हैं। कूपे के इस सफर के दौरान उन दोनों के बीच की गलतफहमी दूर हो जाती है और वे पुन: विवाह करके साथ रहने का निर्णय लेते हैं।

किसी भी रिश्ते का आधार समान विचारधारा नहीं वरन् परस्पर आदर और प्रेम होता है। एक ही राजनीतिक विचारधारा को मानने वालों में भी मतभेद हो सकता है, परंतु पहले से तय किए समान एजेंडा के लिए वे साथ मिलकर काम कर सकते हैं। वैचारिक असमानता का निदान हिंसा में नहीं वरन् आपसी बातचीत द्वारा स्थापित करने में निहित है। आचार्य कृपलानी और उनकी पत्नी की राजनीतिक विचारधारा परस्पर विरोधी थी, परंतु इस कारण उनके विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। शौकत आज़मी सामंतवादी परिवार में जन्मी थीं, परंतु उनका प्रेम विवाह वामपंथी कैफी आज़मी से हुआ था।

विगत सदी के छठे दशक में एक फिल्म ‘परवरिश’ में राज कपूर, महमूद और राधा कृष्ण ने मुख्य भूमिकाएं अभिनीत की थीं। कथासार यूं था कि एक अस्पताल के मेटरनिटी वार्ड में एक समय दो शिशुओं का जन्म होता है। एक शिशु की माता संभ्रांत परिवार की सदस्य थी तो दूसरी एक तवायफ थी। दोनों की पहचान गड़बड़ा जाती है और विवाद का यह हल निकाला जाता है कि दोनों शिशुओं का लालन-पालन सुविधा संपन्न परिवार में होगा। वयस्क होने पर उनकी पहचान कर ली जाएगी। तवायफ का भाई कहता है कि वह अपने भांजे के हितों की रक्षा के लिए संपन्न परिवार में ही रहेगा। कथा में यह पेंच भी था कि वह तवायफ उसी साधन संपन्न व्यक्ति की रखैल थी। अतः पिता एक ही है, परंतु माताएं अलग-अलग हैं। ज्ञातव्य है कि परवरिश के पहले महमूद ने कुछ फिल्मों में एक या दो दृश्यों में दिखाई देने वाले पात्र अभिनीत किए थे। गुरु दत्त की एक फिल्म में उन्होंने मात्र दो दृश्य अभिनीत किए थे। अपने संघर्ष के दिनों में महमूद कुछ समय तक मीना कुमारी के ड्राइवर भी रहे।

‘परवरिश’ में वयस्क होते ही राज कपूर अभिनीत पात्र समझ लेता है कि पहचान के निर्णय के बाद महमूद अभिनीत पात्र का जीवन अत्यंत संघर्षमय हो जाएगा। अत: वह पात्र शराबी, कबाबी और चरित्रहीन होने का स्वांग रचता है। ज्ञातव्य है कि इस फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन के सहायक दत्ता राम ने रचा था। इस फिल्म में हसरत जयपुरी का लिखा और मुकेश का गाया गीत-‘आंसू भरी हैं जीवन की राहें, उन्हें कोई कह दे कि हमें भूल जाएं’ अत्यंत लोकप्रिय हुआ था।

रणधीर कपूर द्वारा निर्देशित फिल्म ‘धरम-करम’ में भी दो शिशुओं का जन्म एक ही समय में होता है। एक का पिता संगीतकार है तो दूसरे का पिता पेशेवर मुजरिम है। मुजरिम संगीतकार के शिशु को अपने बच्चे से बदलकर भाग जाता है। उसे विश्वास है कि संगीतकार के घर पाले जाने पर उसका पुत्र एक कलाकार बनेगा। वह अपने साथियों से कहता है कि संगीतकार के शिशु को बचपन से ही अपराध के रास्ते पर अग्रसर होने दो। प्रेमनाथ अभिनीत ये पात्र कहता है कि उसने शिशुओं की अदला-बदली करके ‘ऊपर वाले का डिजाइन बदल दिया है’। कालांतर में अपराध जगत के परिवेश में पला बालक संगीत विधा में चमकने लगता है और प्रेमनाथ का पुत्र संगीतकार के घर में पलने के बावजूद अपराध प्रवृत्ति की ओर आकर्षित हो जाता है।

यह आश्चर्य की बात है कि राज कपूर ने प्रयाग राज की लिखी ‘धरम-करम’ का निर्माण किया था, जबकि कथा उनकी सर्वकालिक श्रेष्ठ रचना ‘आवारा’ की कथा के विपरीत धारणा अभिव्यक्त करती है। ख्वाजा अहमद अब्बास की लिखी ‘आवारा’ का आधार यह है कि परवरिश के हालात मनुष्य की विचारधारा को ढालते हैं। फिल्म में जज रघुनाथ का बेटा गंदी बस्ती में परवरिश पाकर आवारा बन जाता है। जज रघुनाथ ने एक फैसला दिया था जिसमें एक निरपराध व्यक्ति को वे केवल इसलिए सजा देते हैं कि उसका पिता जयराम पेशेवर अपराधी था। उन्हें गलत सिद्ध करने के लिए उनके अपने पुत्र का पालन पोषण अपराध की दुनिया में किया जाता है। दरअसल ख्वाजा अहमद अब्बास की प्रगतिवादी पटकथा ‘ब्लू ब्लड’ मान्यता की धज्जियां उड़ा देती है कि अच्छे व्यक्ति का पुत्र अच्छा और बुरे का पुत्र बुरा होता है। इस तरह ‘धरम-करम’ राज कपूर की श्रेष्ठ फिल्म ‘आवारा’ के ठीक विपरीत विचारधारा को अभिव्यक्त करती है।

मनुष्य पर कई बातों के प्रभाव पड़ते हैं। जब हम प्याज की सारी परतें निकाल देते हैं तो प्याज ही नहीं बचता, परंतु हाथ में प्याज की सुगंध आ जाती है जो प्याज का सार है। मनुष्य व्यक्तित्व भी प्याज की तरह होता है और उसका सार भी प्याज की सुगंध की तरह ही होता है। व्यक्तिगत प्रतिभा अपनी परंपरा से प्रेरणा लेकर अपने निजी योगदान से उस परंपरा को ही मजबूत करती हुई चलती है। बहरहाल, गुड न्यूज यह है कि विज्ञान की नई खोज से प्रेरित फिल्में बन रही हैं और अवाम उन्हें पसंद भी कर रहा है।



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‘मध्य प्रदेश वायरस’ महाराष्ट्र में भी पहुंचेगा क्या?

दुबई से प्रवास कर लौटी पुणेकर दंपति में कोरोना वायरस के लक्षण सामने आए हैं। उनके बाद उनकी बेटी, उन्होंने जिस कैब में सफर किया उसका चालक, विमान के सहयात्री में भी कोरोना वायरस की पुष्टि हुई है। इसके बाद पुणे सहित महाराष्ट्र दहल गया। सभी ओर यह चर्चा है, लेकिन राजकीय उठापटक की चर्चा का स्तर अलग ही है।


कोरोना वायरस से भी ज्यादा ‘एमपी वायरस’ के बारे में महाराष्ट्र में ज्यादा बोला जा रहा है। विधानसभा चुनावों के नतीजों के बाद से महाराष्ट्र में दहशत का माहौल है। 21 अक्टूबर 2019 को वोटिंग हुई, 24 अक्टूबर 2019 को परिणाम आया। सरकार ने शपथ ली 28 नवंबर को। मंत्रिमंडल ने आकार लिया 30 दिसंबर को। यानी 21 सितंबर को आचार संहिता लागू हुई और 30 दिसंबर तक, यानी पूरे 100 दिन तक महाराष्ट्र में सरकारी कामकाज ठप ही रहा। इस अवधि में सरकार स्थापित हुई और इस दौरान एक सरकार अस्तित्व में आने के साढ़े तीन दिन में ही ढह गई।


भाजपा को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। लेकिन, वह आज विरोधी पक्ष बना हुआ है। शिवसेना ने भाजपा के साथ चुनाव लड़ा, उसका अब मुख्यमंत्री है। मणिपुर, मेघालय, गोवा जैसे छोटे राज्यों में भाजपा ने सत्ता स्थापित करने के लिए पूरा जोर लगा दिया, ऐसे में महाराष्ट्र जैसा बड़ा राज्य कैसे छोड़ दिया, यह प्रश्न सबको परेशान कर रहा है। इस पर उत्तर यही है कि ऐसा प्रयत्न उन्होंने करके देखा है। लेकिन रात में बनी सरकार के गिरने से देवेंद्र फड़नवीस औंधे मुंह गिरे। तब भाजपा ने कोशिशें बंद कर दीं और इस सरकार में ‘ऑल इज वेल’ है, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है।


मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के बाद राजस्थान, महाराष्ट्र में भी पुनरावृत्ति हो सकती है, ऐसी चर्चा शुरू हो गई है। महाराष्ट्र में भाजपा ही ‘सिंगल लार्जेस्ट पार्टी’ है। इस वजह से यहां यह कोशिश तो होगी ही, ऐसा कइयों को लगता है। ऐसी चर्चा करने से पहले आंकड़ों को ध्यान में रखना होगा। मध्य प्रदेश में कुल 230 सीटें हैं। दो विधायकों के निधन की वजह से सदन की प्रभावी संख्या है 228 सीटों की। ऐसे में जादुई नंबर 115 हो जाता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ 22 विधायक हैं, जिससे प्रभावी संख्या रह गई- 206 सीटें। ऐसे में 104 जादुई अंक होगा और भाजपा के पास अपने 107 विधायक तो हैं ही।


ऐसा प्रयोग महाराष्ट्र में करना आसान नहीं। भाजपा सिंगल लार्जेस्ट पार्टी है जरूर, लेकिन बहुमत से काफी दूर है। जादुई अंक है 145 सीटों का और भाजपा के पास 105 विधायक ही हैं। इस वजह से 40 विधायक जुटाना अथवा सदन की प्रभावी सदस्य संख्या को इस कदर घटाना संभव नहीं है। किसी भी पार्टी में तोड़फोड़ मचाने के लिए दो-तिहाई विधायक साथ लाना होंगे। पर्याय है तो विधायकों के इस्तीफे लेने का। इसके लिए विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या को 210 तक लाना होगा।

इसके लिए 78 विधायकों से इस्तीफा लेना असंभव है। महाविकास आघाड़ी सरकार में नाराजगी भरपूर है। मंत्री पद न मिलने से कांग्रेस के विधायक संग्राम थोपटे ने बवाल मचाया था। शिवसेना में दिवाकर रावते नाराज हैं। राकांपा में अजित पवार, जयंत पाटिल जैसे दो गुट हैं। चुनावों में आयाराम-गयाराम का जो दौर चला और भाजपा में ‘इनकमिंग’ का दौर सभी ने देखा है। इस वजह से कोई धोखा नहीं देगा, यह सोचना भी संशय पैदा करता है। किसी पार्टी ने अधिकृत तौर पर भाजपा के साथ जाने का स्टैंड लिया तो ही महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार आ सकती है। फिर भी इसकी संभावना काफी कम है। लेकिन पिक्चर अभी बाकी है!’



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प्रतीकात्मक फोटो।




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बस्ती की पहचान इतनी सख्त हो चली है कि गूगल पर ‘रविदास कैंप’ सर्च करो तो निर्भया के दोषियों के चेहरे दिखाई पड़ते हैं

दिल्ली के रविदास कैंप से. आरके पुरम इलाके में साफ-सुथरी और चौड़ी सड़कों से सटी एक छोटी-सी झुग्गी बस्ती है- रविदास कैंप। 90 के दशक की शुरुआत में बसी इस बस्ती की आज सबसे बड़ी पहचान एक ही है- निर्भया के 6 दोषियों में से 4 इसी बस्ती में रहते थे। बस्ती की यह पहचान इतनी सख्त हो चली है कि गूगल पर भी ‘रविदास कैंप’ सर्च करने पर निर्भया के दोषियों के चेहरेही दिखाई पड़ते हैं।

आरके पुरम सेक्टर-2 स्थित यह बस्ती ‘बिजरी खान के मकबरे’ से बिलकुल सटी हुई है और इसमें करीब ढाई सौ परिवार रहतेहै। बेहद पतली-संकरी गलियों और खुली नालियों वाली इस बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश और राजस्थान से आए हुए हैं। बस्ती की शुरुआत में कुछ दुकानें और कुछ फास्ट-फूड के स्टॉल लगे हुए हैं। इनमें एक स्टॉल राजवीर यादव का भी है, जो इसी बस्ती के रहने वाले हैं। वे कहते हैं, ‘निर्भया मामले के बाद इस बस्ती की पहचान यही हो गई कि वो अपराधी यहां के रहने वाले थे। अब हम चाहें भी तो इस पहचान को मिटा नहीं सकते।’

2012 में जब निर्भया के साथ बर्बरता हुई थी और पड़ताल में सामने आया था कि दोषी इस बस्ती के रहने वाले हैं तो लोगों का आक्रोश बस्ती के अन्य लोगों पर भी फूटने लगा था। यहां के निवासी विश्वकर्मा शर्मा बताते हैं, ‘उस घटना के कुछ ही दिनों बाद एक दिन एक आदमी यहां बम लेकर चला आया था। उसने आरोपी राम सिंह का पता पूछा और घर के पास पहुंचकर बम लगा दिया। लोगों को जब इसकी भनक लगी तो पुलिस बुलाई। फिर बम निरोधक दस्ते ने आकर हालात को काबू में लिया। उसके बाद काफी समय तक यहां पुलिस सुरक्षा रखी गई।’

16 दिसंबर की उस कुख्यात घटना के बाद इस बस्ती की पहचान पूरी तरह से बदल गई। यहां के रहने वाले, जहां कहीं भी जाते। लोग उनसे निर्भया मामले पर ही तरह-तरह के सवाल पूछने लगते। विश्वकर्मा शर्मा कहते हैं, ‘उस वक्त तो कई बार ऐसा होता कि मैं किसी सरकारी दफ्तर जाता तो अधिकारी पहचान पत्र पर मेरा पता देखते ही मुझे अलग बुला लेते और पूछने लगते कि उस घटना के बारे में बताओ, दोषियों के बारे में बताओ, वो कैसे लड़के हैं आदि। लेकिन धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा। अब इन दोषियों को फांसी हो रही है तो मीडिया का आना-जाना एक बार फिर बढ़ गया है।’

गुरुवार की शाम, जब निर्भया के दोषियों को फांसी होने में 12 घंटे से भी कम समय रह गया था, बस्ती का माहौल आम दिनों जैसा ही बना हुआ था। हालांकि, पुलिस की आवाजाही यहां बीते कुछ दिनों से कुछ बढ़ ज़रूर गई थी। पुलिस कई बार बस्ती में आकर दोषियों के परिजनों को तिहाड़ जेल लेकर जाती रही ताकि वे आखिरी समय में उनसे मिल सकें।

पतली-संकरी गलियों और खुली नालियों वाली इस बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग उत्तर प्रदेश और राजस्थान से आए हुए हैं।

निर्भया के दोषियों को फांसी होने के बारे में बस्ती के लोग मिली-जुली राय रखते हैं। ज्यादातर लोग मानते हैं कि दोषियों को फांसी होना सही है तो वहीं कई लोग यह कहते भी मिलते हैं कि इन दोषियों को फांसी सिर्फ इस वजह से हो रही है क्योंकि ये सभी बेहद गरीब परिवारों से आते हैं। इन लोगों का मानना है कि अगर ये दोषी अमीर होते तो बलात्कार और हत्या के तमाम अन्य अपराधियों की तरह इन्हें भी ज्यादा से ज्यादा उम्र कैद की सजा हो सकती थी, लेकिन फांसी नहीं।

बस्ती के अधिकतर लोग मीडिया से बात करने से कतराते हुए भी नजर आते हैं। बस्ती के शुरुआती घरों में ही बिहारी लाल का घर है जो यहां के प्रधान भी हैं। घर का दरवाजा खटखटाने पर उनकी बेटी बाहर आती हैं और बताती है कि उनके पिता घर पर नहीं है। वो कब तक लौटेंगे, यह सवाल करने पर वो कहती हैं कि उनके लौटने का कोई निश्चित समय नहीं। बिहारी लाल का फोन नम्बर मांगने पर उनकी बेटी कहती हैं, ‘पापा ने कल ही नया नंबर लिया है, जो मेरे पास भी नहीं है। उनका पुराना नंबर अब काम नहीं कर रहा।’

बिहारी लाल के घर के बाहर उनके नाम के साथ ही एक फोन नंबर दर्ज है। इस पर फोन करने से मालूम होता है कि वे घर से बमुश्किल सौ मीटर दूर ही फास्ट-फूड का ठेला लगाते हैं और इस वक्त भी वहीं मौजूद हैं। न तो उनका पुराना फोन बदला है और न ही वो काम के लिए घर से कहीं ज्यादा दूर जाते हैं। बिहारी लाल की बेटी जब देखती हैं कि उनका झूठ पकड़ा गया है तो वे बिना कुछ कहे बस घर के अंदर चली जाती हैं।

बस्ती से लगी हुई मेन रोड के पास ही बिहारी लाल स्टॉल लगाए खड़े हैं। उनके साथ उनका बेटा भी है जो ऑटो भी चलाता है और फास्ट फूड बनाने में अपने पिता की मदद भी करता है। मीडिया वालों को देखते ही बिहारी लाल का बेटा कहता है, ‘अब आप क्या लिखने आए हैं। अब तो सब खत्म हो रहा है। उन्हें फांसी हो रही है। जिनके जवान बेटे मरने वाले हैं, उनका दर्द आप नहीं समझ सकते। विनय तो मेरा बचपन का दोस्त था। हम साथ में…’ अपने बेटे को बीच में रोकते हुए और लगभग डपटते हुए बिहारी लाल कहते हैं, ‘कोई दोस्त नहीं था वो तुम्हारा। जो जैसा काम करेगा, वैसा भरेगा।’ बिहारी लाल के इतना कहने और गुस्सा करने पर उनके बेटे उठकर वहां से चल देते हैं।

बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग छोटी-मोटी दुकान चलाते हैं या ऑटो ड्राइवर हैं।

बिहारी लाल बताते हैं, ‘इन लड़कों ने जो किया, उसकी सजा इनको मिल गई। अब इस बस्ती वालों का या इन लड़कों के परिवार का तो इसमें कोई दोष नहीं है। हम बस यही चाहते हैं कि लड़के के परिवार को इसकी सजा न मिले। उन्हें अब बार-बार इसके लिए परेशान न किया जाए।’ बिहारी लाल के स्टॉल पर ही मौजूद एक अन्य व्यक्ति फांसी के इस फैसले और मीडिया पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘आप लोग जैसे लगातार निर्भया के दोषियों को फांसी देने का सवाल उठाते रहे ऐसे ही आप बाकी मामलों को क्यों नहीं उठाते? आप आसाराम को फांसी देने की मांग क्यों नहीं करते? उसने भी बलात्कार किया है, बल्कि एक से ज्यादा किए हैं। उसके आश्रम में छोटे-छोटे बच्चों की लाश निकली हैं। उसके कई गवाहों की तो हत्याएं भी कर दी गईं। इस सब के बाद भी आपने कभी उसे फांसी देने की मांग की है? संसद में बलात्कार के कितने आरोपी बैठे हैं? क्या आपने कभी उन्हें फांसी देने की मांग उठाई? ये लड़के अगर गरीब नहीं होते तो न तो इन्हें फांसी होती और न आप लोग भी ऐसी कोई माँग उठा रहे होते। हम ये नहीं कह रहे कि इन्होंने अपराध नहीं किया। लेकिन अगर कानून सबके लिए एक है तो फांसी सिर्फ इन्हें ही क्यों? सारे बलात्कारियों या हत्यारों को क्यों नहीं?’

रविदास बस्ती के अधिकतर लोग इन दोषियों के परिजनों से सहानुभूति भी जताते हैं। दोषी पवन के घर के ठीक सामने रहने वाली महिला कहती हैं, ‘जिनके जवान बच्चे फांसी पर लटकाए जा रहे हैं, उनका दर्द हम कैसे नहीं समझेंगे। उस मां का तो कोई दोष नहीं। और बच्चा चाहे जितना भी नालायक हो मां कभी उसका बुरा नहीं सोच सकती।’ ये महिला आगे कहती हैं, ‘पवन और विनय तो बहुत छोटे बच्चे हैं। घटना के समय ये दोनों 20 साल के भी पूरे नहीं थे। ये बाकियों के चक्कर में फंस गए।’

पवन और विनय से विशेष सहानुभूति इस बस्ती के अधिकतर लोगों में दिखती है। बस्ती के लोग साफ कारण नहीं बताते लेकिन इतना जरूर कहते हैं कि पवन और विनय का मुख्य दोष ये था कि वो गलत समय, गलत संगत में थे। 16 दिसंबर की घटना के लिए बस्ती के अधिकतर लोग पवन और विनय को कम जबकि मोहल्ले के बाकी दो लड़कों को ज़्यादा दोषी मानते हैं।

निर्भया मामले के चलते सुर्खियों में आई इस बस्ती में रहने वाले अधिकतर लोग छोटी-मोटी दुकान चलाते हैं या ऑटो ड्राइवर हैं। करीब 900 वोटरों वाली इस बस्ती में शायद ही कोई सरकारी नौकरी वाला है। बस्ती के लोग बताते हैं कि यहां के जिन लोगों की सरकारी नौकरी लगी, वो फिर बस्ती छोड़कर कहीं बेहतर जगह चले गए। बस्ती में कुछ ऐसे भी उदाहरण हैं, जिन्होंने यहीं रहकर बेहद गरीबी में पढ़ाई की और फिर अपनी अलग पहचान बनाई। ऐसा ही नाम अंकित का भी सुनने को मिलता है, जिनका बचपन इसी बस्ती की गरीबी में बीता लेकिन वो आज क्राइम ब्रांच में अधिकारी हैं। बस्ती के लोग अब यही चाहते हैं कि उनकी पहचान अंकित जैसे उदाहरणों के साथ जोड़ी जाए और निर्भया के दोषियों से उनकी पहचान जोड़ने का सिलसिला खत्म हो।



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रविदास कैंप: दक्षिणी दिल्ली का स्लम एरिया। यहीं विनय, पवन, मुकेश और रामसिंह रहते थे।




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‘जनता कर्फ्यू’ के दौरान अपने जीवन में मूल्य जोड़ें

कोई भी शिक्षक अपने बेटे या बेटी को शिक्षा दिलाए तो इसमें कोई नई बात नहीं है। लेकिन शिक्षा पूरी करने के दौरान ही शिक्षक की मृत्यु हो जाए तो क्या होगा? आरजे लिनज़ा के साथ बिल्कुल ऐसा ही हुआ, जब वह 2001 में बैचलर डिग्री की पढ़ाई कर रही थी। उसके पिता, संस्कृत के शिक्षक राजन केके का निधन हो गया। किसी भी दौर में संस्कृत शिक्षक की तनख्वाह कितनी होगी, इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है। स्कूल ने उसे केरल के कासरगोड जिले में स्थित उसी स्कूल में अनुकंपा के आधार पर सफाईकर्मी की नौकरी का प्रस्ताव दिया। यह ‘लीव वैकेंसी’ का प्रस्ताव था, यानी उसे सिर्फ तभी काम पर बुलाया जाता, जब कोई कर्मचारी छुट्‌टी पर जाता। उसने इस प्रस्ताव को इसलिए मान लिया क्योंकि उसपर परिवार की और खासतौर पर भाई की जिम्मेदारी थी, जो तब 11वीं कक्षा में था। स्कूल में काम करने के दौरान बचे हुए समय में वह पढ़ाई करती, ताकि वह बीए और फिर एमए कर सके। चूंकि समय गुजरता जाता है और उम्र के साथ शादी भी जरूरी होती है। लिहाजा, लिनज़ा ने 2004 में सुधीरन सीवी से शादी कर ली, जो एक कॉलेज में क्लर्क था। लिनज़ा का पद और उसकी आय, जो वह पीहर में साझा करती थी, कभी भी उसके वैवाहिक जीवन में आड़े नहीं आई। कुछ सालों में वह दो बच्चों की मां बन गई।लेकिन लिनज़ा ने 12 साल तक स्कूल में सफाईकर्मी का काम करते हुए भी व्यवस्थित ढंग से अपनी पढ़ाई की योजना बनाई और केरल टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट और स्टेट एलिजिबिलटी टेस्ट पास किए, जो कि शिक्षक बनने के लिए जरूरी होते हैं। फिर 2018 में जब एक शिक्षक की जगह खाली हुई तो उसने आवेदन दिया और उसे नौकरी मिल गई। आज इस अंग्रेजी की शिक्षिका को अपने जीवन में मूल्य जोड़ने की इच्छा शक्ति के लिए सलाम किया जाता है। अब उसे पदोन्नति का भी इंतजार है।


एक और शख्सियत है, जो कॅरिअर के शिखर पर पहुंचने के बाद भी अपनी शिक्षा में मूल्य जोड़ना नहीं भूली। ये हैं सेबर इंडिया, हैदराबाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की निदेशक प्रिया ढंडपानी। आज वह 93 प्रोफेशनल्स की एक वैश्विक टीम को लीड कर रही हैं, जिसमें टेक्निकल आर्किटेक्ट, डेवलपमेंट मैनेजर, क्वालिटी एनालिस्ट, प्रोडक्ट ओनर्स और डेटाबेस एडमिनिस्ट्रेटर शामिल हैं।

सेबर में 40 वर्षीय प्रिया पर नौ उत्पादों के पोर्टफोलियो की जिम्मेदारी है, जिनमें से अधिकांश उत्पाद ‘मिशन-क्रिटिकल’ हैं। प्रिया हिस्सेदारों और ग्राहक प्रतिनिधियों के साथ काम करती हैं। वह सॉफ्टवेयर विकास को तकनीकी दिशा देती हैं, उत्पादों से जुड़ी योजनाएं बनाती हैं, निष्पादन और क्लाउड पर माइग्रेशन को पूरा करती हैं। इस टेक्नो-फंक्शनल भूमिका को आमतौर पर पुरुषों का कार्यक्षेत्र माना जाता है, लेकिन प्रिया को यह काम पसंद है। दो बच्चों की इस मां ने चार संस्थानों के साथ काम किया है। सेबर के साथ उनका यह दूसरा कार्यकाल है, जो चार अरब अमेरिकी डॉलर की ट्रैवल टेक्नोलॉजी कंपनी है। उन्होंने बैचलर ऑफ साइंस (एप्लाइड साइंस एंड कंप्यूटर टेक्नोलॉजी) के बाद एमसीए किया। इसके बावजूद उन्होंने खुद को और सीखने से रोका नहीं। प्रिया ने हाल ही में एमआईटी स्लोन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिजनेस स्ट्रैटजी में इसके इंप्लीकेशंस पर एक ऑनलाइन कोर्स किया है। उनका मानना है कि हर चीज में सुधार की गुंजाइश होती है।

अपने आप को अधिक मूल्यवान बनाना पूरी तरह स्वार्थ नहीं है। जब आप ज्ञान प्राप्त करते हैं, एक नया कौशल सीखते हैं या नया अनुभव प्राप्त करते हैं, तो आप न केवल खुद को बेहतर बनाते हैं, बल्कि दूसरों की मदद करने की आपकी क्षमता भी बढ़ती है। जब तक आप खुद को और अधिक मूल्यवान नहीं बनाते, आप दूसरों के जीवन में मूल्य नहीं जोड़ सकते। दूसरों को आगे बढ़ाने की क्षमता पाने के लिए, पहले खुद आगे बढ़ना होगा।

इन दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने सभी को जितना ज्यादा हो सके, घर पर रहने के लिए कहा है, जिसे ‘जनता कर्फ्यू’ कहा गया है (जो कि वर्तमान में कोरोनावायरस के हमले से लड़ने के लिए आवश्यक है)। हमें इसे खुद में मूल्य जोड़ने के तरीके खोजने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। इस समय का उपयोग नया कौशल सीखने, अच्छी पुस्तकें पढ़ने या ऐसी तकनीक सीखने में कर सकते हैं, जो आपको दुनिया से अलग तरीके से जोड़ता है। मर्जी आपकी है।

फंडा यह है कि ‘जनता कर्फ्यू’ जैसी स्थिति का लाभ उठाएं और योजना बनाएं कि आप जीवन में मूल्य कैसे जोड़ सकते हैं क्योंकि आवश्यक कौशल नहीं होने पर आप दूसरों को कुछ नया नहीं दे सकते।



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Add value to your life during 'Janata Curfew'




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‘कहां-कहां से गुजर गया मैं’

अनिल कपूर अभिनीत पहली फिल्म एम.एस. सथ्यु की थी जिसका टाइटल था ‘कहां-कहां से गुजर गया मैं’। अपनी पहली फिल्म के नाम के अनुरूप ही अनिल कपूर आंकी-बांकी गलियों से गुजरे हैं। सफर में बहुत पापड़ बेले हैं। जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही अनिल कपूर को सुनीता से प्रेम हो गया। सुनीता योग करती हैं और सेहत के लिए क्या, कब, कितनी मात्रा में लेना है, इस क्षेत्र की वह विशेषज्ञ हैं।उन्होंने लंबे समय तक व्यावसायिक रूप से इस जीवन शैली का प्रशिक्षण भी दिया है। उनके जुहू स्थित बंगले की तल मंजिल पर सुनीता की कार्यशाला है।

सुरेंद्र कपूर ‘मुगल-ए- आजम’ में सहायक निदेशक नियुक्त हुए थे। उन्होंने 1963 से ही फिल्म निर्माण प्रारंभ किया। दारा सिंह अभिनीत ‘टार्जन कम्स टू देहली’ में उन्हें अच्छा खासा मुनाफा हुआ। दोनों कपूर परिवार चेंबूर मुंबई में पड़ोसी रहे हैं। सुरेंद्र कपूर के जेष्ठ पुत्र अचल उर्फ बोनी कपूर ने युवा आयु में ही पिता की निर्माण संस्था में काम करना शुरू कर दिया था। सुरेंद्र कपूर की ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ के निर्देशक सुरेंद्र खन्ना की अकस्मात मृत्यु से फिल्म काफी समय तक अधूरी पड़ी रही। बाद में इस फिल्म को येन केन प्रकारेण पूरा किया गया। बोनी कपूर ने दक्षिण भारत के फिल्मकार के. बापू से उनकी अपनी फिल्म का हिंदी संस्करण बनाने का आग्रह किया। अनिल कपूर, पद्मिनी कोल्हापुरे और नसीरुद्दीन शाह के साथ ‘वो सात दिन’ फिल्म बनाई गई। पद्मिनी कोल्हापुरे को राज कपूर की ‘प्रेम रोग’ में बहुत सराहा गया था। इस सार्थक फिल्म ने खूब धन कमाया। अनिल कपूर के अभिनय को सराहा गया, परंतु वे भीड़ में उन्माद जगाने वाला सितारा नहीं बन पाए।

गौरतलब है कि ‘वो सात दिन’ तथा संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में बहुत साम्य है। दोनों में पति अपनी पत्नियों को उनके भूतपूर्व प्रेमी से मिलाने का प्रयास करते हुए एक-दूसरे से प्रेम करने लगते हैं। बोनी कपूर ने महसूस किया कि अनिल को सितारा बनाने के लिए भव्य बजट की फिल्म बनाई जाए। उन्होंने शेखर कपूर को अनुबंधित किया ‘मिस्टर इंडिया’ बनाने के लिए। फिल्म के आय-व्यय का समीकरण ठीक करने के लिए उन्होंने बड़े प्रयास करके शिखर सितारा श्रीदेवी को फिल्म में शामिल किया। यह भी गौरतलब है कि फिल्म में कभी-कभी दिखाई न दिए जाने वाले पात्र को अभिनीत करके अनिल कपूर ने सितारा हैसियत प्राप्त की।

जब अनिल को ज्ञात हुआ कि राज कपूर तीन नायकों वाली ‘परमवीर चक्र’ बनाने का विचार कर रहे हैं और अनिल को एक भूमिका मिल सकती है तब उसने खड़कवासला जाकर फौजी कैडेट का प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह बात अलग है कि राज कपूर ने ‘परमवीर चक्र’ नहीं बनाई, परंतु इस प्रकरण से हमें अनिल की महत्वाकांक्षा और जुझारू प्रवृत्ति का आभास होता है।

अनिल कपूर की घुमावदार कॅरिअर यात्रा में विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ एक यादगार फिल्म साबित हुई। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म ने कोई चमत्कार नहीं किया, परंतु आर.डी.बर्मन के मधुरतम संगीत के कारण यह फिल्म यादगार बन गई। यश चोपड़ा की फिल्म ‘लम्हे’ में भी अनिल कपूर को बहुत सराहा गया, परंतु इसे भी बड़ी सफलता नहीं मिली। नायक-भूमिकाओं की पारी के बाद अनिल कपूर ने चरित्र भूमिकाओं में भी प्रभावोत्पादक अभिनय किया। अनिल कपूर को डैनी बॉयल की अंतरराष्ट्रीय फिल्म ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ में महत्वपूर्ण भूमिका मिली। उनकी भूमिका कौन बनेगा करोड़पतिनुमा कार्यक्रम में एंकर की है। इस फिल्म में एंकर जान-बूझकर गरीब प्रतियोगी को एक प्रश्न का उत्तर देने में गुमराह करता है।

साधन संपन्न व्यक्ति साधनहीन व्यक्ति को सफल होने का अवसर ही नहीं देना चाहते। इस दृश्य के द्वारा फिल्मकार बड़े लोगों के ओछेपन को उजागर करता है। एंकर की कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है और न ही इसमें उसका अपना कोई आर्थिक जोखिम भी नहीं था, परंतु समाज में आर्थिक वर्गभेद हमेशा कायम रहे। इसके लाख जतन किए जाते हैं।



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अभिनेता अनिल कपूर- फाइल ।




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दूरदर्शन पर "बुनियाद'

आजकल दूरदर्शन अपने पुराने कार्यक्रमों का पुन: प्रसारण कर रहा है। मनोहर श्याम जोशी की लिखी और रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित ‘बुनियाद’ देश के विभाजन के समय एक परिवार की कथा प्रस्तुत करता है। आलोकनाथ एवं अनिता कंवर ने केंद्रीय भूमिकाएं अभिनीत की हैं। कार्यक्रम में प्रस्तुत कालखंड विभाजन पूर्व से प्रारंभ होकर स्वतंत्रता प्राप्त होने के बाद के पहले दशक तक जाता है। रमेश सिप्पी ने इसके 40 एपिसोड निर्देशित किए थे। उनके सहायकों ने शेष एपिसोड्स निर्देशित किए थे। व्यापारी परिवार के मुखिया हवेलीराम हैं। उनकी संपत्ति में निरंतर इजाफा हो रहा है। मुखिया के दो पुत्र और एक पुत्री है। पुत्री का नाम वीरांवाली है और पुत्र हवेलीराम, रलिया राम हैं। भाई आत्मानंद स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेता है। उसकी भांजी लाजवंती का विवाह उसके लालची चाचा उम्रदराज व्यक्ति से करा देते हैं। दूल्हा इतनी बड़ी ‌उम्र का है कि विवाह की रात ही लाजवंती विधवा हो जाती है।

विधवाओं के साथ हमारा व्यवहार कभी अच्छा नहीं रहा। दीपा मेहता की फिल्म ‘वॉटर’ में इसका मार्मिक चित्रण है। वीरांवाली लाजवंती की सहेली है, आत्मानंद के अनुयायी हवेलीराम लाजवंती को पढ़ाने जाते हैं। हवेलीराम के परिवार को इस पर सख्त ऐतराज है। उसकी मां उसे समझाती है कि लाजवंती के सम्मान के लिए उसे उससे दूर रहना चाहिए, अन्यथा अफवाहें फैलेंगी। ज्ञातव्य है कि दूरदर्शन पर मनोहर श्याम जोशी का लिखा ‘हमलोग’ दिखाया गया था। इस सीरियल में निम्न, मध्यम वर्ग के पात्रों की कठिनाइयों को प्रस्तुत किया गया था। बड़ी पुत्री को बड़की कहा जाता है और उसके विवाह के प्रसंग को प्रसारित किए जाने वाले दिन अवाम अपनी दुकानें बंद करके घर लौट आए थे। दूरदर्शन ने मनोहर श्याम जोशी को ‘सोप ओपेरा’ विधा के अध्ययन के लिए ब्राजील भेजा। घर की कामकाजी स्त्रियों के मनोरंजन के लिए यह दोपहर में प्रसारित किया जाता था। संभवत: साबुन बनाने वाली कंपनी प्रायोजक थी। सोप ओपेरा रेडियो पर प्रसारित किए जाते थे। ब्राजील में इसे ‘टेलीनावेला’ कहा गया। इस विधा का प्रारंभ 1931 में हुआ था।

मनोहर श्याम जोशी ने अपनी विदेश यात्रा में इस विधा का अध्ययन किया। उन्हें यह लगा कि विधा मुर्गी के दड़बे की तरह है और पात्र चूजों की तरह बाहर आते हैं। मुर्गी को आसानी से पकड़ा जा सकता है। ज्ञातव्य है कि किशोर कुमार की फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ के एक दृश्य में नायिका मधुबाला किशोर कुमार को मुर्गी पकड़ने के लिए कहती है। यह अत्यंत मनोरंजक दृश्य रहा। रलिया राम और हवेलीराम के पिता का नाम लाहौरी राम है। सुधीर पांडे ने इस पात्र को अभिनीत किया था।
उन्होंने ‘टॉयलेट एक प्रेमकथा’ में परंपरावादी और जिद्दी ब्राह्मण की भूमिका अभिनीत की थी। मनोहर श्याम जोशी का उपन्यास ‘कसप’ अत्यंत लोकप्रिय हुआ। उनके आत्म कथात्मक उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ में उन्होंने अपने तीन स्वरूप प्रस्तुत किए। मनोहर चंचल है, जोशीजी संस्कृत के विद्वान हैं और श्याम प्रेमालू व्यक्ति है। उपन्यास विधा में यह अभिनव प्रयास माना गया। दरअसल हर आदमी में दस आदमी मौजूद रहते हैं। इस उपन्यास की नायिका को ‘पहुंचेली’ कहकर संबोधित किया गया है। मनोहर श्याम जोशी को शास्त्रीय संगीत का ज्ञान था। खाकसार का उनके साथ परिचय था। ‘बुनियाद’ बनते समय उन्होंने रमेश सिप्पी से आग्रह किया कि खाकसार से संपर्क करा दें। रमेश सिप्पी ने रणधीर कपूर के माध्यम से मुझसे संपर्क किया। खाकसार मनोहर श्याम जोशी को राज कपूर के घर ले गया। मनोहर श्याम जोशी के संगीत ज्ञान से राज कपूर प्रभावित हुए और उनसे पटकथा लिखने का अनुरोध भी किया। ‘मैं कौन हूं’ नामक इस प्रस्तावित फिल्म का कथासार यह था कि मुंबई के ठाणे स्थित पागलखाने में एक महिला हमेशा यही बात कहती है कि ‘कत्ल उसने नहीं किया’।

मनोहर श्याम जोशी को बंगाल के बाउल गीतों की जानकारी थी। कुछ कारणों से पटकथा नहीं लिखी गई। ‘बुनियाद’ में सोनी राजदान ने अभिनय किया था। महेश भट्‌ट और सोनी की पुत्री आलिया आज लोकप्रिय सितारा है और रणबीर कपूर से उसका विवाह हो सकता है। व्यापारी लाहौरी राम की हवेली ‘कूचा ए राधाकिशन’ में स्थित है और आत्मानंद का घर ‘बिछौलीवाली गली’ में है। इस घर में एक तहखाना है। देश के विभाजन के समय हवेलीराम तलघर में छिप गए थे। दंगे-फसाद के समय घर में उनकी घड़ी और चश्मा मिलता है। उन्हें मृत मान लिया जाता है, परंतु कथा के अंत समय वे दिल्ली के शरणार्थी कैंप में मिलते हैं।

बहरहाल, पुन: प्रसारण के दौर में कुंदन शाह और अजीज मिर्जा का ‘नुक्कड़’, सतीश शाह एवं रत्ना पाठक अभिनीत ‘सारभाई वर्सेस साराभाई’ और शरद जोशी का लिखा ‘यह जो है जिंदगी’ भी प्रदर्शित किया जाना चाहिए।



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‘बुनियाद’ में अनिता कंवर और आलोकनाथ




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Urban tennis conquers city squares in corona times

Tennis in the time of coronavirus serves up a new sort of court as World Club players take their game to Munich's now empty squares and boulevards.




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वॉकिन फीनिक्स ने गवर्नर से की कैदियों को छोड़ने की अपील, कहा- "जेल में किसी का भी कोरोना से मरना उचित नहीं"

ऑस्कर विजेता एक्टर वॉकिन फीनिक्स ने सरकार से जेल में बंद कैदियों को छोड़ने की अपील की है। एक्टर ने न्यूयॉर्क गवर्नर एंड्रयू कुओमो के नाम एक वीडियो मैसेज जारी किया। साथ ही फीनिक्स ने वीडियो में जेल के खराब हालातों के बारे में भी बताया।

"कोई भी जेल में कोरोनावायरस से मरने का हकदार नहीं है"
एक्टर ने पोस्ट में लिखा कि, ऑस्कर विजेता एक्टर वॉकिन फीनिक्स की तरफ से संदेश। मैं गवर्नर कुओमो से जेल में बंद कैदियों पर रहम करने की अपील करता हूं। आपके फैसले पर कई लोगों की जान निर्भर है। कोई भी जेल में कोविड 19 से मरने का हकदार नहीं है। वीडियो में फीनिक्स ने कहा कि, जब आप बंदी बनाए जाते हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग और साफ सफाई नहीं होती। लीडर्स को जेल में बंद कैदियों और वहां काम करने वालों की सुरक्षा के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए।

15 साल पहले का हादसा किया था याद
एसशोबिज के मुताबिक फीनिक्स ने बताया कि, 15 साल पहले उन्होंने 'वॉक द लाइन' फिल्म की सक्सेस पार्टी में जमकर शराब पी ली थी। उन्होंने बताया कि, मैं दुनिया के साथ वैसे नहीं जुड़ा था, जैसे मैं जुड़ना चाहता था। मैं एक बेवकूफ की तरह भाग रहा था, शराब पीकर लोगों को परेशान करने की कोशिश कर रहा था।

हो सकते थे बड़े हादसे का शिकार
एक्टर ने बताया कि, एक रात उनकी कार क्रेश हो गई थी। इस हादसे के बाद वे सिगरेट जलाने वाले थे, लेकिन अचानक जर्मन फिल्ममेकर हेरजॉग बीच में आ गए। एक्टर ने बताया कि हेरजॉन ने उन्हें सचेत किया कि, पेट्रोल बह रहा है और वे खुद को सिगरेट जलाकर खुद केो आग लगाने वाले थे।

न्यूयॉर्क के हाल सबसे खराब
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक, अमेरिका में 24 घंटे में 2,600 लोगों ने दम तोड़ा है। यहां अब तक कुल 30 हजार हजार 844 जान गई है। देश में बुधवार को 30 हजार 206 केस मिले हैं। इसके साथ ही देश में संक्रमितों की कुल संख्या छह लाख 38 हजार 111 हो गई है। सबसे ज्यादा संक्रमित न्यूयॉर्क में कुल 11 हजार 586 मौतें हो चुकी हैं, जबकि यहां दो लाख 14 हजार 648 केस की पुष्टि हो चुकी है।



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Walkin Phoenix appealed to the governor to release the prisoners, saying - "No one in jail is allowed to die from the corona"




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"हम तो बीज हैं, दफन होना हमारी विलादत है", इरफान खान के मशहूर डायलॉग्स जो दिखाते हैं अदाकारी की गहराईयां

बॉलीवुड इंडस्ट्री के दिग्गज एक्टर्स में शुमार इरफान खान 53 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए। न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर से जूझ रहे इरफान ने कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। साल 1988 में आई मारी नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे' से बॉलीवुड पारी शुरु करने वाले खान ने अपने फिल्मी करियर में 150 से ज्यादा फिल्में की। उनके जाने से प्रशंसकों और सिने जगत को गहरा झटका लगा है। आज भले ही इरफान हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके फिल्मी किरदार और डायलॉग्स हमेशा उनकी यादें ताजा करते रहेंगे।

इरफान आखिरी बार फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' में नजर आए थे। इसके अलावा वे डायरेक्टर सलीम खासा की फिल्म 'द विकेड पाथ' करने जा रहे थे। इरफान 'द विकेड पाथ' में स्कूल प्रिंसिंपल मिस्टर हॉर्टन का किरदार निभाने वाले थे। फिल्म में रॉबर्ट क्लोसी, केन, माइल्स क्लोसी, किंबरले मैगनेस अहम किरदार निभा रहे हैं।

2010 में आई फिल्म 'पान सिंह तोमर' सेना के जवान के बागी बनने की कहानी थी। फिल्म में इरफान ने टाइटल रोल प्ले किया था।

2014 की हिट फिल्म 'गुंडे' में मुख्य किरदार अर्जुन कपूर और रणवीर सिंह ने निभाया था, लेकिन कहानी में इरफान के पुलिस अफसर सत्या के किरदार की काफी तारीफ हुई थी।

'साहेब बीवी और गैंगस्टर रिटर्न्स' सीरीज की दूसरी फिल्म थी। 2013 में रिलीज हुई इस फिल्म में इरफान, इंद्रजीत सिंह की भूमिका में नजर आए थे।

बायोपिक 'पान सिंह तोमर' के लिए इरफान को 2013 में हुए आईफा अवॉर्ड्स में बेस्ट एक्टर कैटेगरी में नॉमिनेशन मिला था।

एक्शन पैक्ड फिल्म में इरफान खान मुख्य भूमिका में थे। इस फिल्म में उनके साथ इमरान हाशमी भी अहम किरदार निभाते नजर आए थे।

कश्मीर घाटी की परेशानियां दिखाती फिल्म 'हैदर' में इरफान ने रूहदार का किरदार निभाया था। 2014 में रिलीज हुई फिल्म ने 28 अलग-अलग अवॉर्ड अपने नाम किए थे।

2013 में आई इरफान खान की रोमांटि-ड्रामा फिल्म 'द लंचबॉक्स' को बाफ्ता अवॉर्ड्स में नॉमिनेशन मिला था। इसके अलावा फिल्म ने अन्य 28 अवॉर्ड अपने नाम किए थे।

2016 में आई 'मदारी' इरफान खान की चर्चित फिल्मों में से एक है। फिल्म में इरफान ने निर्मल कुमार का किरदार निभाया था।

कॉमेडी फिल्म 'करीब करीब सिंगल' में इरफान खान, योगी के किरदार में नजर आए थे। योगी जो अपनी पर्सनालिटी के एकदम उलट लड़की से ऑनलाइन मिलता है।

विवेक अग्निहोत्री डायरेक्टोरियल फिल्म 'चॉकलेट: डीप डार्क सीक्रेट्स' में इरफान भी अहम भूमिका में थे। हालांकि फिल्म दर्शकों और बॉक्स ऑफिस दोनों जगहों पर खास कमाल नहीं कर पाई थी।



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"We are seeds, our burial is our pleasure", Irfan Khan's famous dialogues that show the depths of the actress




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Locked down UK comedians aim for record with virtual pub quiz

Russell Howard, Nish Kumar, Jon Richardson and others help 'landlady' Kiri Pritchard-Mclean host 'The Big Comedy Quiz at The Covid Arms' and break a Guinness World Record.




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"हमें भी डर लगता है, पर हम फर्ज निभाएंगे, तो हजारों श्रमिक घर पहुंच पाएंगे"

मिलन मांजरावाला. इस शहर से अपने राज्यों के लिए जाने वाले श्रमिक सुरक्षित अपने गांव-शहर पहुंच जाएं, इसके लिए रेल्वे स्टेशन पर कई लोग अपनी ड्यूटी ईमानदार के साथ कर रहे हैं। इसमें कोई नेत्रहीन है, तो कोई दिव्यांग। यहां तक कि 3 गर्भवती महिलाओं ने अपना मातृत्व अवकाश को त्यागकर फर्ज निभाना ठीक समझा।


फ्रंट वारियर्स के बारे में
भास्कर ने ऐसे ही फ्रंट वारियर्स के बारे में जाना और उनसे बात की। सूरत के स्टेशन मास्टर सीएम खटिक ने बताया कि लोगों को अपने गांव-शहर पहुंचाने के लिए हमारा मेंटेनेंस, सिगनल, ट्रेफिक, सुरक्षा, साफ-सफाई विभाग अपने ड्यूटी निभा रहा है। कई कर्मचारियों में यह डर है कि उन्हें भी कोरोना का संक्रमण हो सकता है। इसके बाद भी वे फर्ज निभा रहे हैँ। वास्तव में यही फ्रंट वारियर्स हैं।


6 महीने की गर्भवती पति-सास के साथ काम कर रही है
रेल्वे स्टेशन में साफ-सफाई करने वाली पारुल काछी को 6 महीने का गर्भ है, अपनी मेटरनिटी लीव को त्याग कर वह ड्यूटी कर रही है। वह बताती हैं कि मैं यदि रेल्वे स्टेशन की साफ-सफाई नहीं रखूंगी, तो कोरोना यहां भी आ जाएगा। फिर श्रमिक भाई अपने गांव-शहर नहीं जा पाएंगे। मेरी मदद के लिए मेरे पति और सास आते हैं। मैं झाडू लगाती हूं, तो पति कचरा उठाते हैं। मेरी सास समय-समय पर हमारे लिए भोजन-दवाई लाती हैं। रेल्वे अधिकारी ने बताया कि पारुल को अवकाश मिल रहा है, पर वे अवकाश नहीं लेती।


नेत्रहीन होने से लोगों से टकराता हूं, तो संक्रमण का डर लगता है
वीरेंद्र भाई नेत्रहीन हैं। इसके बाद भी वे अपने घर से रेल्वे स्टेशन तक पहुंच जाते हैं। वे बताते हैं कि कई बार चलते-चलते लोगों से टकरा जाता हूं, तो कोरोना के संक्रमण का डर लगता है। मास्क-सेनेटाइजर से खुद को सुरक्षित रखने की कोशिश करता हूं। स्टेशन में जब लोग अपने गांव-शहर जाते हैं, तो उनकी खुशी देख तो नहीं सकता, पर जब सब मिलकर जय जगन्नाथ का नारा लगाते हैं, तो नारा सुनकर खुशी होती है।


चल नहीं सकता, पर कभी लेट नहीं हुआ
स्टेशन में ट्रेनों की जानकारी देने वाले पोलियाग्रस्त विकास वणवी चल नहीं सकते। इसके बाद भी वे टाइम से ड्यूटी पर पहुंच जाते हैं, कभी लेट नहीं हुए। विकास बताते हैं कि अपने राज्य जाने वाले मजदूरों की हमें आवश्यकता है। इसलिए मैं समय पर आकर लोगों को ट्रेनों के बारे में जानकारी देता हूं।


दोनों जीआरपी गर्भवती होने के बाद भी ड्यूटी पर
सूरत रेल्वे स्टेशन पर कानून-व्यवस्था कायम रहे, इसके लिए जीआरपी को तैनात किया गया है। जीआरपी में तैनात दो महिला कांस्टेबल अर्पणा और दर्शना गर्भवती हैं। उसके बाद भी वे दोनों ड्यूटी पर हाजिर हैं। वे बताती हैं कि इन हालात में हमारे श्रमिक भाई सुरक्षित अपने गांव-शहर पहुंच जाएं, यही काफी है। इस समय देश को हमारी जरूरत है। इसके बाद भी यहां हमारी देखभाल के लिए पूरा स्टॉफ है। वे हमारा पूरा खयाल रखते हैँ।



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सफाईकर्मी पारुल ने मातृत्व अवकाश त्याग कर पति-सास के साथ काम कर रही हैं।




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शाहपुर से आई आवाज "पुलिस रोज परेशान करती है, आज उसे जिंदा जाने नहीं देना है"

पुलिस हमें रोज परेशान करती है। आज उसे हम जिंदा नहीं जाने देंगे। ऐसा कहते हुए शाहपुर के एक समूह ने शुक्रवार की शाम को पुलिस पर पत्थरबाजी की। पुलिस वहां लॉकडाउन का सख्ती से पालन करवाने के लिए गई थी।


पूर्व नियोजित थी पत्थरबाजी
इस संबंध में शाहपुर पुलिस ने 17 लोगों को हिरासत में लिया है। 2000 लोगों के खिलाफ शाहपुर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई है। अन्य आरोपियों को पकड़ने की मशक्कत की जा रही है। बताया गया है कि पुलिस पर की गई पत्थरबाजी पूर्व नियोजित थी।


लोग बेरिकेडिंग तोड़ रहे हैं
शाहपुर में कोरोना पर नियंत्रण के लिए बेरिकेडिंग की गई है। लोग उसे तोड़कर कानून अपने हाथ में ले रहे हैं। अक्सर कार्पोरेशन के कर्मचारियों से विवाद होते रहते हैं। शुक्रवार की शाम को आरएएफ की टीम लॉकडाउन का सख्ती से पालन करवाने के लिए निकली थी। तभी डोडियावाड नाके के पास एक समूह जमा हो गया। भीड़ में से यह आवाज आ रही थी कि पुलिस हमें रोज परेशान करती है, आज उसे जिंदा नहीं जाने देना है। उसे सबक सिखाकर ही रहेंगे। ऐसा कहते हुए पुलिस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी। जिससे शाहपुर पीआई आर के अमीन, पीएसआई समेत 4 पुलिसकर्मी घायल हो गए।


हमले के बाद क्राइम ब्रांच और पेरामिलिट्री फोर्स पहुंची
पुलिस पर चारों ओर से पत्थरबाजी हो रही थी। सूचना मिलने पर जोन 2 की सभी पुलिस, क्राइम ब्रांच और पेरामिलिट्री फोर्स भी पहुंच गई। भीड़ को काबू में लाने के लिए 57 टीयर गैस और रबर बुलेट छोड़नी पड़ी। इससे भीड़ बिखर गई। भीड़ ने ऑटो रिक्शे के कांच और अन्य वाहनों को नुकसान पहुंचाया। इसके बाद पुलिस ने अंदर जाकर 17 लोगों को हिरासत में लिया।



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पुलिस शाहपुर के इलाके में गश्त करती हुई।




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Members of Islamic State-Haqqani network arrested over Kabul attacks

Afghan security forces arrested eight members of a network grouping Islamic State and Haqqani militants responsible for bloody attacks in the capital including on Sikh worshippers, the country's security agency said on Wednesday.




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United States' Khalilzad to meet Taliban in Qatar, visit India, Pakistan

The U.S. special envoy on Afghanistan is on a mission to press Taliban negotiators in Doha and officials in India and Pakistan to support reduced violence, speeding up intra-Afghan peace talks and cooperating on the coronavirus pandemic, the State Department said on Wednesday.




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Pakistan coronavirus cases surge past 25,000, pace quickens: Reuters tally

Coronavirus cases in Pakistan surged past 25,000 on Friday, just hours before the government was due to lift lockdown measures, with the country reporting some of the biggest daily increases in new infections in the world.




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Bangladesh quarantines hundreds of Rohingya boat people on island: officials

The Bangladesh navy has rescued around 280 Rohingya Muslims from the Bay of Bengal, towing their stranded boat to an island where they will be quarantined as a precaution against the coronavirus, coast guard and naval officials said on Friday.




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Nasdaq erases 2020 declines

Wall Street's indexes climbed Thursday, with the Nasdaq erasing losses for 2020, following a clutch of upbeat earnings reports led by PayPal. Fred Katayama reports.




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Cats, PJs, alien eyes unwelcome as work video calling boom prompts new etiquette

(This March 17 story corrects stock symbol of Zoom to ZM.O, not ZOOM.PK in the last paragraph)




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Sex toy sales take off amid Colombia's coronavirus quarantine

Gerson Monje holds up his cellphone to proudly show off his online sex shop. A red banner reading "sold out!" is plastered across half of the products.




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President queries Tanzania coronavirus kits after goat test

Coronavirus test kits used in Tanzania were dismissed as faulty by President John Magufuli on Sunday, because he said they had returned positive results on samples taken from a goat and a pawpaw.




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On the hunt for Asian "murder hornets" in Washington

The sting of the Asian giant hornet can kill and that's not just an expression of speech. Since their discovery in 2019 in the US, traps have been set to see if Asian giant "murder hornets" have settled in the state. Libby Hogan has more.




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Syria's mosques open for prayer as coronavirus lockdown eases

Syria's government allowed mosques to open on Friday for worshipers willing to perform prayers. The mosque had remained closed as part of the measures taken to contain the spread of coronavirus.




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'Never give up': Queen praises Britons on Victory in Europe Day

Britain's Queen Elizabeth honored those who died in World War Two on Friday, the 75th anniversary of Victory in Europe Day, and used the occasion to say she was proud of how people had responded to the coronavirus pandemic.




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Youth recreate Iraq's ancient Nineveh in VR technology

Stone by stone, digital artists and game developers from Mosul are rebuilding Nineveh's heritage sites in the digital world. Francis Maguire reports.




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'Never give up': Queen praises Britons on Victory in Europe Day

Britain's Queen Elizabeth honored those who died in World War Two on Friday, the 75th anniversary of Victory in Europe Day, and used the occasion to say she was proud of how people had responded to the coronavirus pandemic.




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Queen say 'You Are The Champions' to health workers

Rock band Queen and singer Adam Lambert are raising money for health workers fighting COVID-19 with new single ''You Are The Champions." Ryan Brooks reports.




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Locked down UK comedians aim for record with virtual pub quiz

Russell Howard, Nish Kumar, Jon Richardson and others help 'landlady' Kiri Pritchard-Mclean host 'The Big Comedy Quiz at The Covid Arms' and break a Guinness World Record.




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London's "temples of gastronomy" improvise to survive COVID-19

Andrew Wong knew from an early age that running a restaurant required improvisation, having watched his parents steer their London Chinese restaurant through nearly 30 years of good times and bad.




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India equity mutual fund inflows halve in April as coronavirus keep investors away

Inflows into India's equity mutual funds nearly halved in April, industry data showed, as many investors rattled by stock market volatility due to the new coronavirus and the impact of a lockdown on the economy chose to stay away.




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Cricket: India ready for quarantine in Australia to help tour proceed - official

India captain Virat Kohli and his team mates would be ready to spend two weeks in quarantine in Australia if that helped the tour go ahead as planned later this year, a top official of the Indian board has said.




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More than 1,000 queue for food in rich Geneva amid virus shutdown

More than 1,000 people queued up on Saturday to get free food parcels in Geneva, underscoring the impact of the coronavirus epidemic on the working poor and undocumented immigrants even in wealthy Switzerland.




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एलजी ने लॉन्च किया फोल्डेबल फोन G8X ThinQ, इनकी स्क्रीन्स को सुविधानुसार अलग भी कर सकते हैं

गैजेट डेस्क. एलजी ने भारतीय बाजार में अपने डुअल डिस्प्ले वाले स्मार्टफोन एलजी G8X ThinQ को लॉन्च कर दिया है। भारत में इसकी कीमत 49,999 रुपए है। यह स्मार्टफोन डुअल स्क्रीन एक्सेसरीज के साथ आता है, जिससे दूसरी स्क्रीन को डिवाइस के साथ जोड़ा जा सकता है और सुविधानुसार अलग भी किया जा सकता है। यह ऑरोरा ब्लैक कलर ऑप्शन में अवेलेबल है।

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फोटो क्रेडिट - ट्विटर
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चीनी कंपनी iQOO ने भारत में 4G और 5G फोन किए लॉन्च, अब तक का सबसे तेज प्रोसेसर मिलेगा

गैजेट डेस्क. चीनी कंपनी आईकू (iQOO) ने भारतीय बाजार में अपना पहला स्मार्टफोन iQOO 3 लॉन्च कर दिया है। इस फोन को 4G और 5G वैरिएंट में अलग-अलग लॉन्च किया गया है। फोन की शुरुआती कीमत 36,999 रुपए है। इस स्मार्टफोन में क्वालकॉम कंपनी का अब तक का सबसे तेज प्रोसेसर स्नैपड्रैगन 865 लगा है। फोन तीन कलर वैरिएंट टोरनेडो ब्लैक, क्वांटम सिल्वर और वोल्केनो ऑरेंज में आएगा। इसे कंपनी की ऑफिशियल वेबसाइट के साथ ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म फ्लिपकार्ट पर 4 मार्च से खरीद पाएंगे।

iQOO 3 के वैरिएंट और कीमत

वैरिएंट कीमत
8GB+128GB (4G फोन) 36,990 रुपए
8GB+256GB (4G फोन) 39,990 रुपए
12GB+256GB (5G फोन) 44,990 रुपए

ऑफर : फोन को ICICI बैंक के क्रेडिट और डेबिट कार्ड से खरीदने पर 3000 रुपए का डिस्काउंट दिया जाएगा। इसे 12 महीने की नो कोस्ट EMI पर भी खरीद पाएंगे। रिलायंस जियो फोन पर 12,000 रुपए तक के बेनिफिट्स दे रही है।

iQOO 3 का स्पेसिफिकेशन

डिस्प्ले 6.44-इंच HDR 10+ सुपर एमोलेड डिस्प्ले
रैम/रोम 8GB+128GB, 8GB+256GB, 12GB+256GB
प्रोसेसर क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 865
कैमरा 48+13+13+2MP रियर, 16MP फ्रंट
ओएस एंड्रॉयड 10 बेस्ड iQoo UI 1.0
बैटरी 4440mAh
चार्जिंग 15 मिनट में 50% चार्ज
एआई सपोर्ट कैमरा, गेमिंग, बैटरी, प्रोसेसर

इस स्मार्टफोन से जुड़े 5 सवाल जो आपके मन में होंगे?

1. क्या स्क्रीन खूबसूरत और आंखों के लिए अच्छी है?
जवाब : फोन में सुपर एमोलेड स्क्रीन का इस्तेमाल किया गया है। इसका साइज 6.44-इंच है, जो यूजर के वीडियो और गेमिंग एक्सपीरियंस को बेहतर बनाएगी। स्क्रीन हाई डायनामिक रेंज (HDR 10+) के साथ आती है। वहीं, इसकी पिक्सल डेनिसिटी 409ppi है। यानी सूर्य की रौशनी में भी फोन का डिस्प्ले बेहतर नजर आएगा। सुपर एमोलेड डिस्प्ले का फायदा ये है कि ये नाइटमोड को फुली सपोर्ट करती है। ऐसी स्क्रीन से यूजर की आंखों पर जोर नहीं पड़ता।

2. क्या कैमरा पावरफुल है और रात में तस्वीरें बेहतर आती हैं?
जवाब : फोटोग्राफी के लिए इसमें 48 मेगापिक्सल वाला क्वाड AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) रियर कैमरा सेटअप किया गया है। इसका प्राइमरी लेंस 48 मेगापिक्सल का है, जो सोनी IMX582 लेंस है। दूसरा लेंस 13 मेगापिक्सल का टेलीफोटो है, जो 20X जूम को सपोर्ट करता है। तीसरा लेंस 13 मेगापिक्सल का है, जो 120 डिग्री एरिया कवर करता है। वहीं, चौथा लेंस बोकेह इफेक्ट को सपोर्ट करता है। सेल्फी के लिए इसमें 16 मेगापिक्सल का कैमरा दिया है। कंपनी ने इवेंट के दौरान चार फोटो के उदाहरण दिए। इसमें नाइट मोड के साथ वाला फोटो भी शामिल था। ये सभी फोटो नोर्मल फोटो की तुलना में ज्यादा बेहतर थे। फोटो की क्वालिटी को देखकर ये लगता है कि इसका कैमरा इफेक्टिव है।

3. प्रोसेसिंग में बफरिंग तो नहीं होगी?
जवाब : ये स्मार्टफोन 5G रेडी है। यानी ये 4G स्मार्टफोन की तुलना में 10 गुना ज्यादा तेज है। इस पर 3.3Gbps की डाउनलोड स्पीड मिलेगी। यानी 2 सेकंड में पूरी फिल्म डाउनलोड हो जाएगी। इसके सभी वैरिएंट में क्वालकॉम कंपनी का अब तक का सबसे तेज प्रोसेसर मिनिमम 8GB रैम के साथ दिया है। ये कॉम्बिनेशन फोन को मल्टीटास्किंग या हैवी गेमिंग के दौरान भी एकदम स्मूद रखेगा। प्रोसेसर की स्पीड को मापने वाली कंपनी antutu ने इसे 610576 स्कोर दिया है, जो दुनियाभर में किसी एंड्रॉयड स्मार्टफोन को मिलने वाला सबसे ज्यादा स्कोर है। कंपनी ने इसे दुनिया का सबसे तेज एंड्रॉयड स्मार्टफोन बताया है।

4. स्टोरेज में कितना डेटा रख पाएंगे?
जवाब : सबसे कम स्टोरेज वाले iQOO 3 फोन में 128GB स्टोरेज दिया है। यदि आपको मूवी देखना पसंद है, तब इसमें 1GB साइज वाली 80 से 100 मूवीज तक रख सकते हैं। वहीं, फोन से 4K रिकॉर्डिंग करते हैं तो इस बात का ध्यान रखना होगा कि ऐसी एक घंटे की फाइल 80GB से 100GB तक का स्पेस ले सकती है। यानी आप 4K साइज की छोटी-छोटी क्लिप बनाएं। या फिर फुल HD रेजोल्यूशन पर रिकॉर्डिंग करें।

5. बैटरी कितनी देर में चार्ज होगी और कितनी चलेगी?
जवाब : फोन में 4440mAh की बैटरी दी है। इसके साथ 55 वॉट का सुपर फ्लैश चार्जर आता है। कंपनी का दावा है कि बैटरी 15 मिनट में 50 प्रतिशत चार्ज हो जाती है। यानी 30 से 35 मिनट में ये फुल चार्ज हो जाएगी। यूं तो 4440mAh की बैटरी 24 घंटे से ज्यादा का बैकअप देती है, लेकिन गेमिंग और सोशल मीडिया पर दिनभर एक्टिव रहने पर इसका बैकअप 12 से 15 घंटे तक हो जाता है।



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iQoo 3 5G With Snapdragon 865 SoC, 55w charger and Quad Rear Cameras Launched in India: Price, Specifications, Variants and more




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टोयोटा ने पेश की खुद से चार्ज होने वाली हाइब्रिड इलेक्ट्रिक ‘वेलफायर’, कीमत 79.5 लाख रुपए

ऑटो डेस्क. टोयोटा किर्लोस्कर मोटर ने अपने हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहन ‘वेलफायर’ को बुधवार को भारतीय बाजार में पेश किया। कंपनी की यह लग्जरी कार खुद चार्ज होती है। यह कार ईंधन खपत के साथ ही कार्बन उत्सर्जन भी कम करती है। इसमें ढाई लीटर के चार सिलेंडर वाला गैसोलिन हाइब्रिड इंजन है जो 115 एचपी की क्षमता प्रदान करता है।

कंपनी ने कहा कि वेलफायर इंजन में दो इलेक्ट्रिक मोटर और एक हाइब्रिड बैटरी भी है जो उत्सर्जन को कम करती है। कंपनी के एसवीपी नवीन सोनी के अनुसार नई वेलफायर की देशभर के शोरूम में कीमत 79.5 लाख रुपए है।



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Toyota Vellfire launched: Big brother of Innova Crysta is priced at Rs. 79.5 lakh




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चीनी कंपनी iQOO के स्मार्टफोन की पहली बिक्री आज, अब तक का सबसे तेज प्रोसेसर वाला एंड्रॉयड फोन

गैजेट डेस्क. चीनी कंपनी आईकू के iQOO 3 स्मार्टफोन की पहली सेल आज से शुरू हो रही है। ग्राहक इसे कंपनी की ऑफिशियल वेबसाइट के साथ फ्लिपकार्ट से 12PM बजे सेखरीद पाएंगे। कंपनी ने इस फोन को 4G और 5G वैरिएंट में अलग-अलग लॉन्च किया है। फोन कीशुरुआती कीमत 36,999 रुपए है। इस स्मार्टफोन में क्वालकॉम कंपनी का अब तक का सबसे तेज प्रोसेसर स्नैपड्रैगन 865 लगा है।फोन तीन कलर वैरिएंट टोरनेडो ब्लैक, क्वांटम सिल्वर और वोल्केनो ऑरेंज में आ रहा है।

iQOO 3 के वैरिएंट और कीमत

वैरिएंट कीमत
8GB+128GB (4G फोन) 36,990 रुपए
8GB+256GB (4G फोन) 39,990 रुपए
12GB+256GB (5G फोन) 44,990 रुपए

ऑफर : फोन को ICICI बैंक के क्रेडिट और डेबिट कार्ड से खरीदने पर 3000 रुपए का डिस्काउंट दिया जाएगा। इसे 12 महीने की नो कोस्ट EMI पर भी खरीद पाएंगे। रिलायंस जियो फोन पर 12,000 रुपए तक के बेनिफिट्स दे रही है।

iQOO 3 का स्पेसिफिकेशन

डिस्प्ले

6.44-इंच HDR 10+ सुपर एमोलेड डिस्प्ले

रैम/रोम

8GB+128GB, 8GB+256GB, 12GB+256GB

प्रोसेसर

क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 865

कैमरा 48+13+13+2MP रियर, 16MP फ्रंट
ओएस एंड्रॉयड 10 बेस्ड iQoo UI 1.0
बैटरी 4440mAh
चार्जिंग 15 मिनट में 50% चार्ज
एआई सपोर्ट कैमरा, गेमिंग, बैटरी, प्रोसेसर

इस स्मार्टफोन से जुड़े 5 सवाल जो आपके मन में होंगे?

1. क्या स्क्रीन खूबसूरत और आंखों के लिए अच्छी है?
जवाब : फोन में सुपर एमोलेड स्क्रीन का इस्तेमाल किया गया है। इसका साइज 6.44-इंच है, जो यूजर के वीडियो और गेमिंग एक्सपीरियंस को बेहतर बनाएगी। स्क्रीन हाई डायनामिक रेंज (HDR 10+) के साथ आती है। वहीं, इसकी पिक्सल डेनिसिटी 409ppi है। यानी सूर्य की रौशनी में भी फोन का डिस्प्ले बेहतर नजर आएगा। सुपर एमोलेड डिस्प्ले का फायदा ये है कि ये नाइटमोड को फुली सपोर्ट करती है। ऐसी स्क्रीन से यूजर की आंखों पर जोर नहीं पड़ता।

2. क्या कैमरा पावरफुल है और रात में तस्वीरें बेहतर आती हैं?
जवाब : फोटोग्राफी के लिए इसमें 48 मेगापिक्सल वाला क्वाड AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) रियर कैमरा सेटअप किया गया है। इसका प्राइमरी लेंस 48 मेगापिक्सल का है, जो सोनी IMX582 लेंस है। दूसरा लेंस 13 मेगापिक्सल का टेलीफोटो है, जो 20X जूम को सपोर्ट करता है। तीसरा लेंस 13 मेगापिक्सल का है, जो 120 डिग्री एरिया कवर करता है। वहीं, चौथा लेंस बोकेह इफेक्ट को सपोर्ट करता है। सेल्फी के लिए इसमें 16 मेगापिक्सल का कैमरा दिया है। कंपनी ने इवेंट के दौरान चार फोटो के उदाहरण दिए। इसमें नाइट मोड के साथ वाला फोटो भी शामिल था। ये सभी फोटो नोर्मल फोटो की तुलना में ज्यादा बेहतर थे। फोटो की क्वालिटी को देखकर ये लगता है कि इसका कैमरा इफेक्टिव है।

3. प्रोसेसिंग में बफरिंग तो नहीं होगी?
जवाब : ये स्मार्टफोन 5G रेडी है। यानी ये 4G स्मार्टफोन की तुलना में 10 गुना ज्यादा तेज है। इस पर 3.3Gbps की डाउनलोड स्पीड मिलेगी। यानी 2 सेकंड में पूरी फिल्म डाउनलोड हो जाएगी। इसके सभी वैरिएंट में क्वालकॉम कंपनी का अब तक का सबसे तेज प्रोसेसर मिनिमम 8GB रैम के साथ दिया है। ये कॉम्बिनेशन फोन को मल्टीटास्किंग या हैवी गेमिंग के दौरान भी एकदम स्मूद रखेगा। प्रोसेसर की स्पीड को मापने वाली कंपनी antutu ने इसे 610576 स्कोर दिया है, जो दुनियाभर में किसी एंड्रॉयड स्मार्टफोन को मिलने वाला सबसे ज्यादा स्कोर है। कंपनी ने इसे दुनिया का सबसे तेज एंड्रॉयड स्मार्टफोन बताया है।

4. स्टोरेज में कितना डेटा रख पाएंगे?
जवाब : सबसे कम स्टोरेज वाले iQOO 3 फोन में 128GB स्टोरेज दिया है। यदि आपको मूवी देखना पसंद है, तब इसमें 1GB साइज वाली 80 से 100 मूवीज तक रख सकते हैं। वहीं, फोन से 4K रिकॉर्डिंग करते हैं तो इस बात का ध्यान रखना होगा कि ऐसी एक घंटे की फाइल 80GB से 100GB तक का स्पेस ले सकती है। यानी आप 4K साइज की छोटी-छोटी क्लिप बनाएं। या फिर फुल HD रेजोल्यूशन पर रिकॉर्डिंग करें।

5. बैटरी कितनी देर में चार्ज होगी और कितनी चलेगी?
जवाब : फोन में 4440mAh की बैटरी दी है। इसके साथ 55 वॉट का सुपर फ्लैश चार्जर आता है। कंपनी का दावा है कि बैटरी 15 मिनट में 50 प्रतिशत चार्ज हो जाती है। यानी 30 से 35 मिनट में ये फुल चार्ज हो जाएगी। यूं तो 4440mAh की बैटरी 24 घंटे से ज्यादा का बैकअप देती है, लेकिन गेमिंग और सोशल मीडिया पर दिनभर एक्टिव रहने पर इसका बैकअप 12 से 15 घंटे तक हो जाता है।



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iQoo 3 5G and 4G smartphone With Snapdragon 865 SoC, 55w charger to Go on Sale for First Time in India Today via Flipkarta and iQoo.com; Price, Specifications, Variants and more




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India equity mutual fund inflows halve in April as coronavirus keep investors away

Inflows into India's equity mutual funds nearly halved in April, industry data showed, as many investors rattled by stock market volatility due to the new coronavirus and the impact of a lockdown on the economy chose to stay away.




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Cricket: India ready for quarantine in Australia to help tour proceed - official

India captain Virat Kohli and his team mates would be ready to spend two weeks in quarantine in Australia if that helped the tour go ahead as planned later this year, a top official of the Indian board has said.




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More than 1,000 queue for food in rich Geneva amid virus shutdown

More than 1,000 people queued up on Saturday to get free food parcels in Geneva, underscoring the impact of the coronavirus epidemic on the working poor and undocumented immigrants even in wealthy Switzerland.




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FDA commissioner in self-quarantine after exposure to person with COVID-19

U.S. Food and Drug Administration Commissioner Stephen Hahn is in self-quarantine for a couple of weeks after coming into contact with someone who tested positive for COVID-19, an FDA spokesman told Reuters late on Friday.




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Cricket: India ready for quarantine in Australia to help tour proceed - official

India captain Virat Kohli and his team mates would be ready to spend two weeks in quarantine in Australia if that helped the tour go ahead as planned later this year, a top official of the Indian board has said.




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U.S. women's soccer team file to appeal equal pay ruling

The U.S. women's soccer team have filed to appeal a district court decision handed down last week that dismissed their claims for equal pay, a spokesperson for the team said on Friday.